Guaiacum Officinale Linnious
यह चिरकालिक या पुराना आमवात और गठिया (Arthritis & Gout) की चिकित्सा में उपयोगी है।
पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Guaiacum Officinale Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस वनस्पति को हिन्दी भाषा में चोबेहयात, संस्कृत में जीवदास, लौह काष्ट, अमृतदारु, बुद्धमित्र, मुंबई में लौह लक्कड़, और अंग्रेजी भाषा में Pookwood tree, Brazil wood, Lignum vitae, Lignum sanctum, Guajeum Nigre कहते है। और इससे प्राप्त गोद को guaiacum कहा जाता है।
वंश - यह पौधा Zygophyllaceae कुल का सदस्य है। इस कुल में इसकी लगभग 6 जातिया पाई जाती है।
निवास - यह वनस्पति उष्णकटिबंधीय क्षेत्र अमेरिका और वेस्टंडीज का मूल वासी है। फिर भी भारत के उद्दानो में इसके वृक्ष पर्याप्त लगाए जाते है। भारत में पाई जाने वाली इसकी जाती को Guaiacum Officinale कहा जाता है। इसकी झाड़ीदार वृक्ष पहाड़ी क्षेत्रों में होते है। भारत के यह उत्तर प्रदेश, बनारस, हाथरस जिलों में भी इसके वृक्ष पाए जाते है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक सदाहरित छोटे या मझोले कद का झाड़ीनुमा वृक्ष है इसकी उचाई लगभग 15 मीटर तक पायी जाती है। इसका तना (धड़) प्रायः टेढ़ा मेढ़ा और शाखाएं गठीली होती है। इसके तना की छाल गहरे भूरे रंग की होती है। जिनपर हरे या निल लोहित धब्बे पाए जाते है। शाखाओ की छाल मटमैले रंग की धारीदार होती है। इसके नए कल्ले कुछ कुछ चपटे और आरोमिल होते है। इसकी एक ही गाठ से कई कल्ले निकलते है। यह एक बहुशाखीय वृक्ष होता है। टहनियों पर इसकी पत्तिया आमने सामने संयुक्त गहरे भूरे रंग की होती है। इसके पर्णक एक साथ दो तीन की संख्या में जुड़े रहते है। पत्तिया अवृंतिय (sessile), आकार प्रकार में भिन्न अंडाकार या अधोमुखी अंडाकार होती है। इसकी प्रत्येक पत्तियों के आधार पर छोटे नारंगी रंग के धब्बे होते है। शाखाओ के शीर्ष पर नीले रंग के फूल गुच्छो में लगते है। नीले रंग के फूल प्रौढ़ होने पर फीके रजत वर्णो (silvery) हो जाते है। इसके छोटे फल अधोमुखी, हृदयाकार सम्पीड़ित सी चमकीले पिले या नारंगी रंग के होते है। इसके फल बेरी जैसे होते है, जिनमे कठोर अंडाकार बीज होते है। इसके फूल अतिशय सुन्दर, मनमोहक और शोभाकारी होते है। इसके काष्ट रस पिले और अन्तः काष्ट रस हरिताभ भूरा से लेकर काले रंग के विशिष्ट अम्लीय गंध युक्त कड़वा होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का परिपक्व लकडिया उपयोग किया जाता है। इसका संकलन सभी ऋतुओ में संभव होता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ सैपोनिन, ग्लाइऑक्सैपोनिन अम्ल और ग्लाइऑक्सैपोनिन पाए जाते है। इसमें ग्लाइआग्यूटिन, और सौरभिक (Aromatic) तेल का भी कुछ अंश पाया जाता है। इसके चैलिया या चूर्ण को नमक के साथ उबालने पर रेजिन प्राप्त होता है। इस वनस्पतियो की लकड़ियों के चूर्ण को अल्कोहल में डालने से इसके सभी रसायन अल्कोहल में घुल जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ में एंजाइम और रेजिन प्रमुख है। एंजाइम को रेजिन से पृथक नहीं किया जा सका है। फिर भी रेजिन का शारीरिक क्रियाओ पर पड़ने वाले प्रभाओं को अप्रभावी किया जाना संभव हुआ है। रेजिन बड़े घने पिंडो में या कभी कभी गोल या अंडाकार बुल्लो में पाया जाता है यह भूरे, काली से लेकर मटमैला भूरा होता है। इसकी महक गुलमेंहदी जैसी होती है। इसका स्वाद कुछ तिष्ण होता है और चूसने पर गले में जलन पैदा करता है। इससे प्राप्त ग्वाइआकम गोंद की क्रिया मृदु रेचक (laxative) होती है। यह चिरकालिक या पुराना आमवात और गठिया (Arthritis & Gout) की चिकित्सा में उपयोगी है। इसका उपयोग रक्त शोधक मिश्रणो (mixture for blood purifire) में सारसा पैरीला (smilex medica) के साथ किया जाने लगा है। तुण्डिका शोध (tonsilitis) और ग्रसनी शोध (pharyangitis) की चिकित्सा के लिए और इसके साथ आमवात (rheumatism), संधियों का अकड़न (arthritis), साइटिका (scitica) इत्यादि वात रोगो में इसके अनुपान से वेदना दूर होती है। गाँठो की सूजन में भी यह लाभकारी पाया जाता है। महिलाओ के गर्भाशय की शुद्धि कर के गर्भस्थापन के लायक बनाता है। इसके मल्हम से जख्म शीघ्र भरता है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे के चूर्ण का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), मल्हम आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस वनस्पति को हिन्दी भाषा में चोबेहयात, संस्कृत में जीवदास, लौह काष्ट, अमृतदारु, बुद्धमित्र, मुंबई में लौह लक्कड़, और अंग्रेजी भाषा में Pookwood tree, Brazil wood, Lignum vitae, Lignum sanctum, Guajeum Nigre कहते है। और इससे प्राप्त गोद को guaiacum कहा जाता है।
वंश - यह पौधा Zygophyllaceae कुल का सदस्य है। इस कुल में इसकी लगभग 6 जातिया पाई जाती है।
निवास - यह वनस्पति उष्णकटिबंधीय क्षेत्र अमेरिका और वेस्टंडीज का मूल वासी है। फिर भी भारत के उद्दानो में इसके वृक्ष पर्याप्त लगाए जाते है। भारत में पाई जाने वाली इसकी जाती को Guaiacum Officinale कहा जाता है। इसकी झाड़ीदार वृक्ष पहाड़ी क्षेत्रों में होते है। भारत के यह उत्तर प्रदेश, बनारस, हाथरस जिलों में भी इसके वृक्ष पाए जाते है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक सदाहरित छोटे या मझोले कद का झाड़ीनुमा वृक्ष है इसकी उचाई लगभग 15 मीटर तक पायी जाती है। इसका तना (धड़) प्रायः टेढ़ा मेढ़ा और शाखाएं गठीली होती है। इसके तना की छाल गहरे भूरे रंग की होती है। जिनपर हरे या निल लोहित धब्बे पाए जाते है। शाखाओ की छाल मटमैले रंग की धारीदार होती है। इसके नए कल्ले कुछ कुछ चपटे और आरोमिल होते है। इसकी एक ही गाठ से कई कल्ले निकलते है। यह एक बहुशाखीय वृक्ष होता है। टहनियों पर इसकी पत्तिया आमने सामने संयुक्त गहरे भूरे रंग की होती है। इसके पर्णक एक साथ दो तीन की संख्या में जुड़े रहते है। पत्तिया अवृंतिय (sessile), आकार प्रकार में भिन्न अंडाकार या अधोमुखी अंडाकार होती है। इसकी प्रत्येक पत्तियों के आधार पर छोटे नारंगी रंग के धब्बे होते है। शाखाओ के शीर्ष पर नीले रंग के फूल गुच्छो में लगते है। नीले रंग के फूल प्रौढ़ होने पर फीके रजत वर्णो (silvery) हो जाते है। इसके छोटे फल अधोमुखी, हृदयाकार सम्पीड़ित सी चमकीले पिले या नारंगी रंग के होते है। इसके फल बेरी जैसे होते है, जिनमे कठोर अंडाकार बीज होते है। इसके फूल अतिशय सुन्दर, मनमोहक और शोभाकारी होते है। इसके काष्ट रस पिले और अन्तः काष्ट रस हरिताभ भूरा से लेकर काले रंग के विशिष्ट अम्लीय गंध युक्त कड़वा होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का परिपक्व लकडिया उपयोग किया जाता है। इसका संकलन सभी ऋतुओ में संभव होता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ सैपोनिन, ग्लाइऑक्सैपोनिन अम्ल और ग्लाइऑक्सैपोनिन पाए जाते है। इसमें ग्लाइआग्यूटिन, और सौरभिक (Aromatic) तेल का भी कुछ अंश पाया जाता है। इसके चैलिया या चूर्ण को नमक के साथ उबालने पर रेजिन प्राप्त होता है। इस वनस्पतियो की लकड़ियों के चूर्ण को अल्कोहल में डालने से इसके सभी रसायन अल्कोहल में घुल जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ में एंजाइम और रेजिन प्रमुख है। एंजाइम को रेजिन से पृथक नहीं किया जा सका है। फिर भी रेजिन का शारीरिक क्रियाओ पर पड़ने वाले प्रभाओं को अप्रभावी किया जाना संभव हुआ है। रेजिन बड़े घने पिंडो में या कभी कभी गोल या अंडाकार बुल्लो में पाया जाता है यह भूरे, काली से लेकर मटमैला भूरा होता है। इसकी महक गुलमेंहदी जैसी होती है। इसका स्वाद कुछ तिष्ण होता है और चूसने पर गले में जलन पैदा करता है। इससे प्राप्त ग्वाइआकम गोंद की क्रिया मृदु रेचक (laxative) होती है। यह चिरकालिक या पुराना आमवात और गठिया (Arthritis & Gout) की चिकित्सा में उपयोगी है। इसका उपयोग रक्त शोधक मिश्रणो (mixture for blood purifire) में सारसा पैरीला (smilex medica) के साथ किया जाने लगा है। तुण्डिका शोध (tonsilitis) और ग्रसनी शोध (pharyangitis) की चिकित्सा के लिए और इसके साथ आमवात (rheumatism), संधियों का अकड़न (arthritis), साइटिका (scitica) इत्यादि वात रोगो में इसके अनुपान से वेदना दूर होती है। गाँठो की सूजन में भी यह लाभकारी पाया जाता है। महिलाओ के गर्भाशय की शुद्धि कर के गर्भस्थापन के लायक बनाता है। इसके मल्हम से जख्म शीघ्र भरता है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे के चूर्ण का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), मल्हम आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।