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Menyanthes Trifoliata Linnious: Marsh Buckbean के औषधीय गुण और उपयोग

Menyanthes Trifoliata Linnious: Marsh Buckbean की पहचान, लाभ और होम्योपैथिक उपयोग

.Menyanthes Trifoliata Linnious. E = घरेलु उपयोगी; M = औषधीय ।

"'कॉम्पेश्मिम ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडीसीनल प्लॉग्टस एण्ड मेटोन्स"

खण्ड- प्रथमः प्रकरण 61; पौधा कोड नं०-61

Menyanthes Trifoliata Linnious medicinal plant image
Image source: Wikimedia Commons, Creative Commons License


Menyanthes Trifoliata Linnious का पौधा
Image source: Wikimedia Commons, Creative Commons License


1. वनस्पति का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - मेनीएन्थस ट्राइफोलिएटा 'लिनिअस (Menyanthes Trifoliata Linnious).


2. इलेक्ट्रो होम्यो पंथी की औषधि विन्यास के लिए एस० पी० सूत्र के अनुसार इसके टिंक्चर के अनुपात - पल्यूड व्हाइट या व्हाइट इलेक्ट्रीसीटी (fluid white or White Electricity = WE) (fluid weib) के विन्यास के लिए इसके टिक्चर का 0.5 भाग, तथा लिम्फ रेमेडीज या लिन्फैटिको नं. 1 (Lymph-Remedies or Linfatico No 1. Linfol) (Lymph Mittel No 1.) के विन्यास के लिए 2.0 भाग उपयोग किए जाते हैं। (इटाली में अंकित जर्मनी नाम है।) इस पैथी के संस्थापक डा० काउन्ट सीजर मैटी द्वारा "मैटी रेमेडीज" की औषधि सिर्फ लिन्फैटिको (Lynfatico) के विन्यास के लिए ही इस वनस्पति के 'टिक्चर व्यवहार किए जाते थे। उनके बाद के दवा साजों ने इस बनस्पति के टिक्चर का उपयोग W.E. के विन्यास के लिए भी करने लगे है, जो आज तक प्रचलित है।


3. विभिन्न भाषाओं में वनस्पति का प्रचलित नाम - अग्ग्रेजी भाषा में इसका सामान्य नाम (common name)-Marsh Buckbean है। (DPUM Page 387) जब कि, गँवों चेएजी के अनुसार इसका सामान्य नाम Bogbean है (MEMP Page 194 सचित्र). इस वनस्पति का जातीय नाम (generic name) "menyanthes" शब्द ग्रोक भाषा के दो शब्द खण्डों men" और "anthes" से बना है। "men" का तात्पर्य "month" और anthes का अर्थ "flower" होता है। ये दोनों शब्द आपस में मिलकर फूलों के दीर्घ जीवन की ओर संकेत करते हैं। वास्तव में इसके फूल एक लम्बी अवधि तक इसकी शाखा शीर्षों पर शौभा-यमान रहते हैं। इस वनस्पति की उपजातीय या प्रजातीय नाम का, "Trifoliata" शब्द, इसकी पत्तियों के प्रकार और संख्या की ओर संकेत करता है। यह "trifoliata' शब्द भी दो शब्द खण्डों से निर्मित है। इसके शब्द के प्रथम खण्ड "tri" का अर्थ "तीन" और द्वितीय खण्ड "foliata" का अर्थ "पत्तियाँ" होती है। वास्तविक रूप में पत्र वृन्त के एक ही उद्गम स्थान से इस वनस्पति की तीन पत्तियाँ विकसित होती हैं। सम्भवतः इसीलिए हिन्दी में इसके पौधों को "तीन पत्तियाँ" कहा जाता है।

4. बंश- इस वनस्पति के वंश के सम्बन्ध में लेखकों में मतैक्य नहीं है। मि० र बैंडों चेएजी एवं मि० जार्ज अशर ने अपनी अपनी रचनाओं में इस बनस्पति को 'मेनी न्थेसी" (Menyanthaceae) परीवार का सदस्य बताया है (MEMP Page 194; DPUM Page 387)। जबकि भारतीय रचनाकार मि० आर० एन० चोपड़ा, मि० एस० एल० नैय्यर, मि० आई० सी० चोपड़ा, मि० राम पो० ग्स्तोगी, और मि० बी० एन० मेहरोत्रा ने अपनी-अपनी कृतियों में इसे 'जेन्शिएनैसी" (gentianaceae) वंश का सदस्य बतलाया है। (G.I.M.P, Page 166; C.I.M.P. Vol. 1, Page 273; Vol 2. Page 456) वास्तव में यह वनस्पति "जेन्शिएनैसी" परीवार का ही सदस्य है।


5. निवास- यह औषधीय बूटी यूरोप की दलदली (marshy) क्षेत्रों का मूल वासी है। यह ब्रिटेन के अलावा भारत में भी कच्छ के रन में (भारतीय समुद्र की पश्चिमी किनारा), और कश्मिर में प्रचूर मात्रा में पाई जाती है। प्रायः पंक युक्त दलदली क्षेत्रों में यह वनस्पति बहुलता में पाई जाती है। (G.I.M.P. Page 166) i


6. वमस्पति का विश्यास वर्णन - यह एक लत्तरदार (creeping) प्रकन्द (rhizome) युक्त पानी या पंक की दलदल में विकसित होने वाली औषधीय बूटी है। इसके प्रकन्द से छोटी-छोटी अनेक लतरदार जड़ें (rootlets) निकलती हैं। इसके पौधों का प्रकान्ड माँसल (fleshy) और पत्तियों की कोषाओं से ढका होता है। जैसा कि पूर्व की कण्डिका में वर्णित है, यह एक त्रिपत्री पौधा है। इसकी पत्तियाँ एक लम्बे वृन्त पर लगती हैं। पत्तियों के आधार विस्तृत होते हैं। तीनों पत्तियों के वृतीय खण्ड आयताकार, मोटे, अरोमिल, चिकनी और चमकदार होते हैं। पत्तियों के अक्ष से निकली हुई लम्बी डण्ठलों के शीर्ष पर फूल लगते हैं। पौधों की सामान्य ऊँचाई लगभग 50 से० मी० होती है। लम्बी डण्ठलों पर (on spike) फूलों की आकृति घण्टी-जैसी (bell-shaped) होती है। फूल की पंखुड़ियों का रंग गुलाबी या उजला होता है। फूल के बाह्यदल पुंज (calyx) 5 खण्डी होते हैं। इस पौधे की गोलाकार सम्पुष्टिका-नुमा फलों में पीले रंग के अनेक बीज होते हैं।


7. वनस्पति के व्यवहुत अंग - औषधीय कार्यों के लिए सम्पूर्ण पौधा (जड़, प्रकन्द, तना, पत्तियाँ, और फूल व्यवहार किया जाता है। इसका संकलन इमके पुष्पण कर बसम्ण बहन में किया जाता है।

8. वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - इसके पौधों में मेनीयान्थीन (menyanthine) मेलीअन्थीन (melyanthine), सैपोनीन (sapon n; गोंन्द (gums) एंजाइम्स (enzynes), पेक्टिन (pectin), टैनीन (tannin), मेनीयान्थी-ऑल (menyanthral), कोलीनी (cholin), कड़ आ पदार्थ (bitter principles), कैरोटीन (carotine) आदि रासायनिक पदार्थ पाए जाते है। (MEMP Page 194) हम जानते हैं कि "कैरोटीन" विटामीन "ए" का एक घटक है। इसे विटामीन "ए" भी कहा जाता है। इसकी कभी ने आँखों का रोग रतौंन्धी (nightblindness) हो जाता है। (इस रोग की यंत्र रचना (mechanism) समझने के लिए डॉ० सुदामा प्रसाद सिंह की पुस्तक "इलेक्ट्रो होम्यो पैथी और जैव-रसायन शास्त्र" का अध्ययन करना चाहिए) ।


इसके पौधों में ग्लूकोसाइड (glucoside), मेनीयान्थीन (menyanthin), और मेलीयाटीन (meliatin) पाए जाने की सूचना है (G.IM.P. Page 166) 1

इके पौधों की पत्तियों से जेन्शियेनीन (gentianine), जेन्शिऐनीडीन (gentianidine), जेन्शिऐल्यूटीन (gentialutine), तथा जेन्शिऐटीवेटीन (gen-tiatibetine) पृथक किए गए हैं, जिनके द्रवणांक (melting point) क्रमशः 81°, 129°, 129°, एवं 160°, डीग्री सैल्सीयस हैं। इसके पौधों में स्कोपोलेटीन (scopoletin), कैफेइक (caffeic) तथा फेरुलीक अम्ल (farulic acids) भी पाए गये हैं। इसकी पत्तियों में रुटीन स्तर (level of rutin) 0-32-0-93 तथा 0:41 से 1.15% तक हाइपेराँसाइड (hyperoside) पाए गए हैं। (CIMP Vol. 2, Page 456) इन रासायनिक पदार्थों के रचक, एंजाइम्स भी पाए गए हैं।


9. रासायनिक पदार्थों के गुण धर्म और शारीरिक क्रियाएँ - वनस्पतियों से प्राप्त मेटाबोलाइटस या अन्तिम उत्पादों के ही रंग, स्वाद, और गन्ध होते हैं तथा इनकी अच्छी या बूरी क्रिया-प्रभाव शरीर एवं शरीर के अंगों और तंत्रों पर पड़ता है। इनकी ऐसी क्रियाओं को वनस्पतियों की या, उनके इस प्रकार के रसायनों की (मेटॉबोलाइट्स) थेरॉप्यूटिक क्रिया कही जाती है। इसी थेरॉप्यूटिक के आधार पर वनस्पतियों के गुण, धर्म और शारीरिक क्रियाओं का निर्धारण और औषधि पहचान बतायी जाती है। थेरॉप्यूटिक क्रिया रखने वाले रासायनिक पदार्थो के रचक वनस्पतियों के प्राथमिक उत्पाद (prymary products) होते हैं जिनमें रंग, स्वाद और गन्धों का पूर्णतः अभाब पाया जाता है, फिर भी शारीरिक क्रियाओ पर इसकी सह‌योगात्मक एवं नियामक असर होती है, जिसकी पहचान या व्यवहार के आधार वनस्पतियों के मेटाबोलाइट्स के थेरॉप्यूटिक ही होते है। क्योंकि वे इनके रचक होते हैं।


इस वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ आमाशय और आँतों की क्रियाओं को बढ़ ने बाले (stomachic), पाचन क्रिया को सम्पन्न कराने या सुधारने वाले (digestive), मासिक नाव को प्रवाह को बढ़ाने और नियमित करने बाले (emmenagogic) ज्वरनाशक, या शरीर के तापमान को नियमित करने वाले (febrifiuge or temprature regulator), वायू नाशक (carminative), किया बाले होते है (MEMP Page 194). इसकी पत्तियों में उपस्थित कैरोटीन बनस्पत्ति को पौष्टिकता का गुण प्रदान करते है। इसके रसायन गुर्दे की सक्रीयता को बढ़ाकर मूत्रल क्रिया प्रकट करते है। स्कैन्डीनैविया में इसका उपयोग शराब को सुवासित करने लिए तथा रूस में आपातकाल (अकाल) के दौरान आहार के रूप में इसकी पत्तियाँ व्यवहार की जाती है। इसकी मुखी हुयी पत्तियाँ चाय के विकल्प


(substitute) के रूप में तथा टाँनिक के रूप में उपयोग की जाती हैं (DPUM Page 387)। तात्पर्य है कि, इसका घरेलु उपयोग किया जाता है। यह विषैली बनस्पति नहीं है ।


इसका औषधीय उपयोग भूख बढ़ाने, बदहजमी दूर करने, पाचन क्रिया सुधारने, यकृत को सक्रीय करने और पुराने चर्म रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है।


अंग्रेजी मासिक पत्रिका (लन्दन से प्रकाशित) "माडर्न मेडीसीन संख्या 295, नवम्बर 1916 के अंक में, इस वनस्पति के गुण, धर्म और क्रियाधों के विषय में कहा गया है कि - It is an astringent, antiscorbutic, emmenagogue, fetrifuge, and vermifuge. It cures ague (पारी से आने वाले सभी ज्वर) amenorrhoea, dropsy, jaundice, rheumatism scorofula, scurvy, skin affections, paralysis, piles, constipation etc.


इस वनस्पति के पंचाग स्वाद में कड़आ (bitter), पौष्टिक (tonic), विरेचक (purgative), सविराम या अविरामज्वर नाशक (recommended in intermittent and remitten fevers). गठिया (gout), यकृतदोष (herpetic complaints), बातदर्द (rheumatism), जलोदर (dropsy), स्कर्वी रोग नाशक (scurvy) कृमिनाशक (vermi fuge) क्रिया वाले होते है। (G.I.M.P. Page 166).

10. बनस्पत्ति के व्यवहार का प्रचलित स्वरूप - औषधीय कार्यों के लिए इस वनस्पति के पंचांग का इन्फ्यूजन, टिंक्चर, तरल सत्व, सोरप, चूर्ण, औषधीय शराब, आदि कई रूपों में व्यवहार प्रचलित है। इले० हो० पै० की भौषधि विन्यास के लिए इसके टिंक्चर व्यवहार करने का विधान है।


11. टिप्पणी - इस छोटी वनस्पति से प्राप्त मौलिक घटक अनेक प्रकार के शराबों को सुवासित करने के लिए व्यवहार किए जाते है। यह व्यापारिक तौर पर शराब बनाने के लिए होप्स (Hops = Plant, code No. 50=Humulus lupulus) के विकल्प के रूप में व्यवहार किया जाता है। यहाँ सनद रहे कि पौधा कोड नं० 50 का भी व्यवहार लिम्फटिको के विन्यास के लिए ही किया जाता है। इसके टिक्चर में मेनीयान्यीन की सान्द्रता पर्याप्त होने के कारण इसकी हल्की खुराक की ही अनुसंशा की जानी चाहिए। इसकी भारी मात्रा का अनुपान वमन-कारी पाया गया है। इन दिनों औषधीय और व्यवसायीक उपयोग के कारण इस बनस्पति की मांग काफी बढ़ी हुयी है।


पूर्व की कण्डिका नौ के अनुकुल इससे विन्यासित औषधियों Linf 1. और 'WE का व्यवहार, पारी से आने वाले ज्वर में, जलोदर में, मूत्र अवरोध में कब्जियत, वात वर्द, स्कर्वी, कृमि, नेत्र रोग, पौष्टिक, विरेचक, यकृत दोष आदि शिकायतों में अवश्थ किया जाना चाहिए ।


12. भारतीय विकल्प - यह वनस्पति भारत में उपलब्ध है, इसलिए विदेशी मूल की वनस्पति होते हुए भी इसके विकल्प पौधा की आवश्यकता नहीं है।

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