पौधे का वैज्ञानिक नाम - बैज्ञानिक भाषा में इस वृक्ष का नाम Ailanthus Glandulosa Desfauntes है। इसको Tree of Heaven भी कहा जाता है।
वंश - यह वनस्पति Simaroubaceae कुल का बड़ा वृक्ष है। इस वंश में इसकी कुल 10 प्रजातियां पाई जाती है।
निवास - यह वनस्पति चीन और जापान का आदिवासी है उत्तरी भारत में इसके वृक्ष पर्याप्त पाए जाते है। आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ -साथ यूरोपीय देशो में भी यह पाया जाता है।
वंश - यह वनस्पति Simaroubaceae कुल का बड़ा वृक्ष है। इस वंश में इसकी कुल 10 प्रजातियां पाई जाती है।
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निवास - यह वनस्पति चीन और जापान का आदिवासी है उत्तरी भारत में इसके वृक्ष पर्याप्त पाए जाते है। आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ -साथ यूरोपीय देशो में भी यह पाया जाता है।
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वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक पतझड़ी बड़ा वृक्ष है जिसकी उचाई लगभग 20 मीटर तक होती है इसकी छालों का रंग भूरा होता है वृक्ष के मुख्य तने पर उभरे हुवे उजले रंग के रोम छिद्र होते है इनकी पत्तिया 12 अदद में भालाकार छोटी छोटी पत्तियों के साथ त्रुटिपूर्ण परदार होती है। छोटी सहपत्रिओ के साथ इसकेफुल होते है। फूल के अन्तस्थ में अत्यधिक सहपत्रिया होती है। वृक्ष के शिखरों पर फूल मई से जुलाई माह तक रहते है। इस वृक्ष से हमेसा एक अप्रिय गंध रिसता रहता है।
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औषधीय कार्य के लिए उपयोगित अंग - इस वृक्ष की छाल को औषधीय के लिए प्रयोग में लाइ जाती है। छालो का संग्रह बसंत ऋतू में किया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक - इस वृष की छाल में तीन कडुवा पदार्थ (Bitter Substances) पाए जाते है। इसमें दो - 6dimethoxyquinone, और तीसरा Ailantone प्रमुख है। जिसका द्रवणांक 222 डिग्री सेंटीग्रेट है। जड़ की छाल से बीटाSitosterol, Scopoletin और वसीय अम्ल के साथ ग्लूकोसाइड, रेजिन, टैनिन, म्यूसिलेज के साथ साथ कई तरह के एंजाइम भी पाए जाते है। इसकी एक उपजातीय Ailanthus excelsa roxb.की छाल से प्राप्त गोद को हींग के नाम से जाना जाता है हींग पाए जाने वाले वनस्पति का प्रचलित नाम मदाल, अरडूसी के नाम से जाना जाता है।
रासायनिक यौगिकों के गुड़ धर्म और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाये - वृक्ष की छाल से प्राप्त रसायन स्रावरोधी (Astrigent) प्रभाव रखते है। अर्थात स्राव पिंडो या ग्रंथियों के बढे हुवे कार्यो को अपने प्रभाव में रख कर कम करते है। इसकी क्रिया ऑटो पर कृमिनाशक (Anthelminthic) होती है। इसकी क्रिया भोजन की नली की क्रमाकुंचन गति (Paristalsis Moment)को उपसहानीभूत नाड़ी मंडल (Para sympathetic Nerves System) पर प्रत्यक्ष प्रभाव रखती है। इसकी क्रिया छोटी और बड़ी आतो की क्रमाकुंचन गति, श्लैष्मिक झिल्ली आदि के कार्यो को सामान्य करने के लिए होती है। इस औषधीय को महिलाओ के धाध (Leukorrhea) को रोकने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसका उपयोग dijestive cainal यानि ऑतो की कृमि, मिर्गी (Epilipsi) हिस्टीरिया और दमा के साथ ह्रदय रोगो में किया जाता है। इसकी क्रिया श्लैष्मिक झिल्ली के साथ - साथ तंत्रिका तंत्र पर भी है।
इसके व्यवहार के प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस वृक्ष की छाल को पाउडर, तरल, इन्फुजन (वनस्पति के औषधीय उपयोगी अंगो पर उबले हुवे पानी की धार दी जाती है और उस पानी को इकठ्ठा कर लिया जाता है इस विधि को ही Infusion कहते है ) काढ़ा के रूप में भी इस औषधीय को प्रयोग में लाया जाता है।
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