पौधे का बैज्ञानिक नाम - Agaricus Muscarius (Parsun) Linnious पौधे का बैज्ञानिक नाम है।
विभिन्न भाषाओ में इस कवक का प्रचलित नाम - इसको हिंदी में छत्रक, कवक आदि नामो से जाना जाता है।
वंश - यह Agaricaceae वंश का छत्रक है। इसकी असंख्य जातीया है। स्थान और काल विशेष के अनुकूल इसकी जातियों के नाम तथा गुण, धर्म और स्वाभाव भी बदलते रहते है।
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निवास - यह सम्पूर्ण पृथ्वी पर विस्तृत रूप से फैले हुवे है। इसकी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। स्थान और समय विशेष के अनुकूल इसकी जातियों के नाम तथा गुण, धर्म और स्वभाव भी बदलते रहते है। कुछ कवक खाद्य और कुछ विषैले होते है। Agaricus Muscarius Linnious एक विषैला कवक है। यह भारत, एशिया, यूरोप, आस्ट्रेलिया, अमेरिका सहित अफ्रीका में जंगली रूप में पाया जाता है।
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पौधा या कवक का वर्णन - यह एक विषैला कवक या छत्रक है इस जाती की संख्या बहुत कम है।कवको का विषैलापन पकाने या शिरका में भिगोने से समाप्त हो जाता है। इसकी उचाई लगभग 20 से 25 सेंटीमीटर होती है। इसके छत्र का व्यास 15 से 20 सेंटीमीटर होता है इसका रंग सिंदूरी या नारंगी लाल होता है। यह लसलसा और चमकदार होता है। इसके छत्रक के ऊपरी सतह पर सफ़ेद या पिले कलर के मस्से के सादृस्य धब्बे होते है। औषधीय कार्य के लिए उपयोगित भाग - औषधीय कार्य के लिए कवक के वृन्त एवं छत्रक का उपयोग किया जाता है। इसकी उत्पत्ति जुलाई और अगस्त माह में होता है।
कवक से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इसमें तीन प्रमुख विषैले यौगिक पाए जाते है Coline, Muscarine, और Atropine को मुस्केरेडिन के नाम से भी जाना जाता है। ये सभी एल्केलायड है कोलिन की मात्रा सभी यौगिकों से अधिक होती है। कॉलिन में रक्त प्रवाह को रोकने की अदभुत क्षमता पाई जाती है। कवक से प्राप्त एंजाइम पाचन सम्बन्धी तथा अन्य कई रोगो की चिकित्सा के लिए व्यवहार में लाये जाते है। इसमें पाया वाला डायस्टीएज नामक एंजाइम लारन्यूनता में तथा तैरोसीनेज नामक एंजाइम उच्च रक्त चाप के लोगो में अन्तः शिरा सुचिवेध से रक्त चाप न्यून करने के लिए व्यवहार किया जाता है। सामान्य व्यक्तियो अर्थात स्वस्थ मनुष्य पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
रासायनिक यौगिकों के गन धर्म और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाएँ - कवक से प्राप्त रासायनिक पदार्थ ज्यादे मात्रा में विषैला प्रभाव रखती है। उसके प्रभाव से आमाशय की कार्य अनियमितताओं के साथ कष्टदायक लक्षण प्रकट होते है। इसकी अति अल्प मात्रा (0.0001 सान्द्रता) जठराग्न विकार को दूर करती है मिचली, वमन, और अतिसार में लाभदायक पायी गयी है। इसके एंजाइम लाल रक्त कोशिकाओं को शक्ति और परिपक्वता प्रदान करते है। ये तंत्रिका तंत्र एवं स्नायु कोशिकाओं को बल देते है और ह्रदय के कार्यो को नियमित कर रक्त चाप को सुस्थिर करते है। इसके एंजाइम पाचन सम्बंधित तकलीफ तथा अन्य रोगो की चिकित्सा के लिए व्यवहार किये जाते है।
कवक के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - कवकों का व्यवहार Tincture, पाउडर (Powder), क्वाय (Decoction) आदि कई रूपों में किया जाता है।
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