Matricaria Chamomilla Linnious: वैज्ञानिक विवरण और औषधीय उपयोग
पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Matricaria Chamomilla Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी, फ़ारसी, गुजराती, अरबी और उर्दू भाषा में बाबूना, और अंग्रेजी भाषा में सामान्य नाम जंगली कैमोमिल (wild chamomile) कहते है।
वंश - यह पौधा A Dictionary of Plants Used by Man, by George Usher पेज 381 के अनुसार Compositae कुल का सदस्य है। और दूसरी ओर केंद्रीय औषधीय शोध संस्थान लखनऊ तथा प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ कम्पेन्डियम ऑफ़ इंडियन मेडिसिनल प्लांट खण्ड एक पृष्ठ 268 एवं खण्ड दो पृष्ठ 446 पर इस वनस्पति को एस्टेरैसी (Asteraceae) परिवार का सदस्य बताया गया है।
निवास - यह पौधा यूरोपीय देशों का मूल निवासी है। यह यूरोप से अफगानिस्तान तक पाई जाती है। इसके पौधे भारत में भी पाए जाते है। यह वनस्पति झाड़ी के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों की सड़को के किनारे निचली पहाड़ी क्षेत्रों और कृषि योग्य खेतो में भी पाई जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक वर्षीय मुसला जड़ वाली औषधीय बूटी है। इसकी उचाई लगभग एक मीटर तक होती है। इसकी उपज दोमट मिट्टी में अच्छी होती है। इसका प्रकांड (stems) सीधा और शीर्ष की ओर बहुशाखित होता है। इसकी अवृंत (sessile) पत्तिया शाखाओ पर प्रायः एकान्तर लगती है। डंठलों पर पत्तियों की सजावट द्रीपक्षदार होती है। वे कोमल, गोल, फुले हुए, सूत्रवत होती है। जिसका अंत एक नुकीला भाग में होता है। पत्तिया बारीक महीन कुछ लम्बी और छोटी होती है। इसकी शाखाएं हरी, बारीक़ और नाजुक होती है। शाखाओ की लम्बाई 9 इंच से लेकर 18 इंच तक होती है। इन शाखाओं में से अनेक छोटी छोटी शाखाएं निकलती है। शाखा शीर्षो पर इसके फूलो की सजावट एक गुच्छे के रूप में रहती है। इनके फूलो में अनेक उजले रंग की जिभिकाकार पंखुडिया होती है। इन पंखुड़ियों से घिरी हुई मध्य में एक छोटा पिले रंग का फूल रहता है। अर्थात इसके फूलो की इकहरी और दोहरी घुंडीया होती है। मध्य की पित्त पुष्पी भाग एक खोखले प्रभाग में स्थित रहता है। जिसका जिसका आधार शंक्वाकार होता है। हल्के रंग के अरोमील फलो में अनेक अतिलघु बीज होते है। इसके फूल खुशबूदार होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का पुष्पित शीर्ष उपयोग किया जाता है। पुष्प शीर्षो का संकलन ग्रीष्म ऋतु में किया जाता है। और औषधीय कार्यो के लिए अविकसित पुष्प ही व्यवहार किये जाते है। पूर्ण विकसित पुष्प उपयोग में नहीं लाये जाते है। वे अयोग्य या बेकार माने जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ azuline, alocohol, sesqueterpens, enzymes, apiginin, various type acids, phytosterol, mucilage, minirals salt, vitamins, essential oil, essence, chamozuline, flavone, glycosides, caumarin, fatty acids, आदि पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ मानव शरीर की तंत्रिका तंत्र की क्रियाओ पर अवसादक (sedative) और निद्रल (hypnotic), नारी जननांगो पर ऋतु श्राव नियामक, पाचन तंत्र पर वायू विरेचक (carminative), ज्वरनाशक (antithermic), वेदनाहारी (analgesic),आदि प्रभाव रखते है। इसके रसायन कर्ण रोग, स्नायुशूल, बच्चो के आक्षेप (convulsion) उन्माद, मिर्गी आदि रोगो में बहुत लाभकारी है।
इसमें पाए जाने वाले एजुलीन के व्यवहार से बाल तो बढ़ते ही है। वे उगते और सुन्दर भी होते है। इसके व्यवहार से बाल काले और घने होते है। तथा रूप लावण्यता में वृद्धि होती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), मल्हम, तेल, लोशन इत्र आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी, फ़ारसी, गुजराती, अरबी और उर्दू भाषा में बाबूना, और अंग्रेजी भाषा में सामान्य नाम जंगली कैमोमिल (wild chamomile) कहते है।
वंश - यह पौधा A Dictionary of Plants Used by Man, by George Usher पेज 381 के अनुसार Compositae कुल का सदस्य है। और दूसरी ओर केंद्रीय औषधीय शोध संस्थान लखनऊ तथा प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ कम्पेन्डियम ऑफ़ इंडियन मेडिसिनल प्लांट खण्ड एक पृष्ठ 268 एवं खण्ड दो पृष्ठ 446 पर इस वनस्पति को एस्टेरैसी (Asteraceae) परिवार का सदस्य बताया गया है।
निवास - यह पौधा यूरोपीय देशों का मूल निवासी है। यह यूरोप से अफगानिस्तान तक पाई जाती है। इसके पौधे भारत में भी पाए जाते है। यह वनस्पति झाड़ी के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों की सड़को के किनारे निचली पहाड़ी क्षेत्रों और कृषि योग्य खेतो में भी पाई जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक वर्षीय मुसला जड़ वाली औषधीय बूटी है। इसकी उचाई लगभग एक मीटर तक होती है। इसकी उपज दोमट मिट्टी में अच्छी होती है। इसका प्रकांड (stems) सीधा और शीर्ष की ओर बहुशाखित होता है। इसकी अवृंत (sessile) पत्तिया शाखाओ पर प्रायः एकान्तर लगती है। डंठलों पर पत्तियों की सजावट द्रीपक्षदार होती है। वे कोमल, गोल, फुले हुए, सूत्रवत होती है। जिसका अंत एक नुकीला भाग में होता है। पत्तिया बारीक महीन कुछ लम्बी और छोटी होती है। इसकी शाखाएं हरी, बारीक़ और नाजुक होती है। शाखाओ की लम्बाई 9 इंच से लेकर 18 इंच तक होती है। इन शाखाओं में से अनेक छोटी छोटी शाखाएं निकलती है। शाखा शीर्षो पर इसके फूलो की सजावट एक गुच्छे के रूप में रहती है। इनके फूलो में अनेक उजले रंग की जिभिकाकार पंखुडिया होती है। इन पंखुड़ियों से घिरी हुई मध्य में एक छोटा पिले रंग का फूल रहता है। अर्थात इसके फूलो की इकहरी और दोहरी घुंडीया होती है। मध्य की पित्त पुष्पी भाग एक खोखले प्रभाग में स्थित रहता है। जिसका जिसका आधार शंक्वाकार होता है। हल्के रंग के अरोमील फलो में अनेक अतिलघु बीज होते है। इसके फूल खुशबूदार होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का पुष्पित शीर्ष उपयोग किया जाता है। पुष्प शीर्षो का संकलन ग्रीष्म ऋतु में किया जाता है। और औषधीय कार्यो के लिए अविकसित पुष्प ही व्यवहार किये जाते है। पूर्ण विकसित पुष्प उपयोग में नहीं लाये जाते है। वे अयोग्य या बेकार माने जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ azuline, alocohol, sesqueterpens, enzymes, apiginin, various type acids, phytosterol, mucilage, minirals salt, vitamins, essential oil, essence, chamozuline, flavone, glycosides, caumarin, fatty acids, आदि पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ मानव शरीर की तंत्रिका तंत्र की क्रियाओ पर अवसादक (sedative) और निद्रल (hypnotic), नारी जननांगो पर ऋतु श्राव नियामक, पाचन तंत्र पर वायू विरेचक (carminative), ज्वरनाशक (antithermic), वेदनाहारी (analgesic),आदि प्रभाव रखते है। इसके रसायन कर्ण रोग, स्नायुशूल, बच्चो के आक्षेप (convulsion) उन्माद, मिर्गी आदि रोगो में बहुत लाभकारी है।
इसमें पाए जाने वाले एजुलीन के व्यवहार से बाल तो बढ़ते ही है। वे उगते और सुन्दर भी होते है। इसके व्यवहार से बाल काले और घने होते है। तथा रूप लावण्यता में वृद्धि होती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), मल्हम, तेल, लोशन इत्र आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।