उत्तर प्रदेश का नंबर - 1, हिंदी हेल्थ चैनल

Breaking

Post Top Ad

a#3

Myrtus Communis Linnious - विलायती मेहंदी (Myrtus Communis): औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

Myrtus Communis Linn. – विलायती मेहंदी के चमत्कारी औषधीय लाभ 

विलायती मेहंदी का पौधा (Myrtus Communis) – औषधीय गुणों से भरपूर हरा पौधा
Image Source: Wikimedia Commons



विलायती मेहंदी का पौधा (Myrtus Communis) – औषधीय गुणों से भरपूर हरा पौधा
Image Source: Wikimedia Commons


"कॉम्पेन्डियन ऑफ इलेक्ट्रो होम्यो-पैथिक मेडीसीनल प्लान्टस एण्ड मेडीसीन्स"


खण्ड- प्रथमः प्रकरण - 62; पौधा कोड नं० - 62


Myrtus Communis Linnious


M = औषधीय उपयोग


1.   नामबनस्पति का वैज्ञानिक या औषधीय नाम -  माइर्टस कॉम्यूनीस लिनिअस (Myrtus Communis Linnious).


2. इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की औषधि विन्यास के लिए एस० पी० सूत्र के अनुसार इसके टिक्चर के व्यवहत अनुपात - Constitutional Remedies or Venereo No. 1 (Vererbungs Mittel No. 1) (वेनेरेयिओ Ven.) के विन्यास के लिए इस वनस्पति के टिक्चर का 1.0 भाग व्यवहार किया जाता है। इसी औषधि के विन्यास के लिए डा० सी० सी० मैटी भी इस वनस्पति के टिंक्चर का उपयोग करते थे। प्रथम कोष्ठक में अंकित नाम इस औषधि के जर्मनी नाम है।


3. बनस्पति के विभिन्न भाषाओं में प्रचलित नाम - हि० पंजाबी - विलायती मेंहदी, आस, मुराद, हेना सामान्य मेंहदी। बंगला - सुत्रसोआ, अरबी-हब्वुलआस । फारसी-आस, असविरी. मऊरीद । तमील - कुलोनवल, उर्दू - हब्बुलास, आस। अंग्रेजी में सामान्य नाम (common name) -Comm-on Myrtle or Myrtle.


4- वंश- यह "माइर्टएसी" (Myrtaceae) परिवार की औषधीय सदस्य बनस्पति है। इस परिवार में इसकी लगभग 100 प्रजातियों का उल्लेख मिलता है (DPUM, Page-404).


5. निवास - यह भूमध्य देशों का मूल निवासी है। यह वनस्पति भारत में मध्यप्रदेश से उत्तर-पश्चिम, और विहार बंगाल तक पूरब में पैदा होती है। बगीचों की बाड़ के लिए इस वनस्पति को लगाया जाता है। यह वनस्पति सम्पूर्ण भारत में सर्वसुलभ है।


6. वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह झाड़ीनुमा लगभग 8 से 10 फिट की ऊँचाई तक बढ़ने वाली औषधीय बूटी है। परिपक्व अवस्था में इसकी छाल लाल होती है। बाद में पुराना होने पर छालों का रंग घूमर और गहराई तक फटा-फटा होकर घाईयां (fissure) बन जाती है। शाखाओं पर इसकी अवृन्त (sessile) पत्तियाँ आमने सामने लगती हैं। पत्तियाँ गोलाइ लिए हुए भाले की आकृति (lan.colate in shape) की होती हैं। पतियों की ऊपरी सतह गहरे हरे रंग की और नीचली सतह अपेक्षाकृत हल्के हरे रंग की होती है। इसकी चर्मीली (leath-ery) पत्तियाँ अनेक छोटी-बडी ग्रन्थियों से युक्त होती है। इन ग्रन्थियों में एक विशिष्ट सुगन्धवाली इजेन्सीयल तेल (Essential oil) होता है। पत्तियों के अक्ष पर लाली लिए हुए भूरे रंग के कई वृन्त निकलते हैं जिनपर झुमकों में फूल लगते हैं। फूलों के बाह्यदलपुंज में पाँच अदद त्रिभुजा कार अंखुड़ियाँ (sepals) होती है। फूलों के पुष्पदलपुंज में (corrola) पाँच अदद पंखुड़ियाँ (petals) अर्ध वृत्ताकार स्थिति में सज्जी रहती है। फूल आकार में छोटे और रंग सफेद होता है। सुगन्धित फूलों के बीच में पीले रंग के अनेक सुन्दर पुंकेशर होते हैं। वास्तविक रूप में फूलों के रंग कृमि होते हैं। इसके गोल फल भी झूमकों में लगते हैं जिनका रंग हरा होता है। पकने के बाद फलों के रंग बैंगनी रंग लिए हुए काले' होते हैं। इसकेगोला-कार माँसल फलों में अनेक छोटे-छोटे बीजों की आकृति गुर्दे जैसी होती है। मेंहदी (विलायती) के पौधे जंगली और कृष्ट दो प्रकार के होते हैं। जंगली मेंहदी का पौधा छोटा होता है। इसके फल पकने पर लाल और पत्तियाँ पीली होती है। जंगली मेंहदी को क्षेत्रीय भाषा फारसी में बुखआस कहा जाता है। इसकी पत्तियों को साल पर पीसकर पेस्ट की तरह सुहागिनें हाथ-पाँव में लाली रंग के लिए व्यवहार करती है। शादी-ध्याह के अवसर पर दुल्हीनों को मेहंदी रचानें की संस्कृति लगभग सभी कौम में पाई जाती है (MEMP, Page 202 सचित्र).


7. वनस्पति का व्यवहत अंग - औषधीय कार्यों के लिए वनस्पति की पत्तियाँ व्यवहार की जाती हैं। यद्दपि कि इसके फलों और पत्तियों से प्राप्त होने वाले रासायनिक पदार्थ लगभग एक समान ही है, फिर भी पत्तियों के रासायनिक पदार्थों का विशेष महत्व हैं। इनका संकलन बसन्त ऋतु में किया जाता है। भारत में इसके पौधों का पुष्पन समय ग्रीष्म ऋतु हैं।


8. वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ -  इसकी पत्तियों में एसेन्सीयल ऑयल (Essential oil), एंजाइम्स, टरपेनिक यौगिक (terpenic compounds), माइर्टेनाल (myrtenal, माईटॉल (myrtol), एल्डीहाइड्स (aldehydes) रेजिन, टैनीन आदि रासायनिक पदार्थ पाए जाते है। (MEMP, Page-202).


इसकी पत्तियों में 19.05% टैवीन पाए जाने का आंकलन है। इसमें लीमोनीन (lemonen), 23.4%, लीनालूल (linalool) 20.2%, अल्फा पाइनीन ( Pinene), 14.5%, सीनीऑल (cineole) 11.6%, पी० साइमोल (p. cymol) 1.8%' कैम्फेन (camphene) 0.5%, बीटा पाइनेन (β-Pinen) 0.3% पाए गए हैं। (C.I.M.P. Vol. 2, Page-478)

पुर्तगाल में पाई जाने वाली बनस्पति की पत्तियों के तेल से इत्र (essence) प्राप्त किया जाता है। इसके इत्र में माइर्टीनायल (myrtinyl) एसीटेट, माइर्टनाल (myrtenel) तथा सीनेऑल (ceneol) पाए गए हैं। इसकी हरी-ताजी शाखाओं से *0.34 से 0.45%, सूखी शाखाओं से 0.49 से 0.59% और पत्तियों से 0.57 से 1.01% तक तेल प्राप्त किए गए हैं। [G.I.M.P; (Suppl.) Page 73)


9. रासायनिक पदार्थों के गुण, धर्म और शारीरिक क्रियाए - इस वनस्पति की पत्तियों से प्राप्त रासायनिक पदार्थ प्रादाहिक पीड़ाओं को कम करते हैं। इसके इस गुण और क्रियाओं को शान्तिदायक (Balsamic) कहते हैं। इसके रसायनों में रक्त स्राव रोकने की अद्भूत क्षमता पाई जाती है। ग्रीक और रोम बासी इसके 'फलों को कभी-कभी मसाला, छौंकनी या चटनी के रूप में आमाशय की क्रियाओं की गड़बड़ी दूर करने के लिए व्यवहार करते हैं। बीजों से तैयार तेल को माइर्टल ऑयल (myrtle oil), ओल्युम माइर्टी (oleum myrti), इसेन्सड माइर्टी (esten-ced myrti), या एन्जील वासर (engel wasser) कहा जाता है। दक्षिण यूरोप में और मध्य भारत वासियों द्वारा सुगन्धि और पौष्टिक के रूप में इसका व्यवहार किया जाता है। इसके बीजों में अति ही कामोत्तेजक क्रियाएँ पाई जाती है (DPUM, Page 404).


यूनानी चिकित्सा पद्धति में आस (मेंहदी) प्राचीन काल से ही काफी प्रतिष्ठित औषधि मानी जाती है। हीपोक्रेट्स, डिस्कोराइडीरा, प्लाइनी, तथा अन्य अरबियन चिकित्सकों तथा लेखकों ने अपने-अपने ग्रन्थों में इस वनस्पति की औषधीय गुणों और क्रियाओं की बड़ी प्रसंशाएँ की है। इप वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थों की सबसे बड़ी विशेषता है कि एक ही वनस्पति के विभिन्न अंगों से प्राप्त रासायनिक पदार्थ विरोधी गुण और क्रियाएँ रखती हैं। इस प्रकार के गुण, धर्म और विरोधी क्रियाएँ दूसरी वनस्पतियों के रासायनिक पदार्थों में देखने में नहीं मिलती हैं। एक ओर इसकी पत्तियों से प्राप्त रसायनों के गुण, धर्म और क्रियाएँ, शीतल, अवसादक और संकोचक पायी जाती है, तो दूसरी और इसके फलों से प्राप्त रसायनों में गरम, उत्तेजक और प्रसारक क्रियाएँ पाई जाती है। इसके रसायनों की प्रधान क्रियाएँ, फेफड़े और सूत्र-संस्थान पर पाई जाती है। इसलिए 'पुरानी खाँसी और सुजाक (Syphylis) की बीमारियों को कपफनाशक और मूत्रल 'क्रियाओं के माध्यम से भारोग्य करते हैं।


यह अतिसार और प्रवाहिका (dysentry) रोग में लाभकारी होता है। इसके फूलों को सूघने से बुरे स्वप्न आते हैं। इसके फलों से प्राप्त रसायन ग्रीष्म ऋतु में होने वाली खांसी में लाभकारी पाए गए है। वे दस्तों को बन्द करते हैं, मूत्रल है, और पत्थरी (गुर्दे / पित्ताशय/मुत्राशय) को बाहर निकालते हैं। हृदय के लिए बलकारी, पेचिशनाशक, रक्तस्राव रोधक आग से जले घावों का पूरक आदि क्रियाएँ इसके रसायनों में पायी जाती है। जल जाने पर इसके तेल का मालिश या पेन्ट करने से फफोले नहीं उठते हैं। इसके रसायन आमाशय के लिए बलकारक, प्यासशामक वमनरोधक, मतलीनाशक, हिचकी आदि दूर करने वाले होते हैं।


इसके फूलों और पत्तियों से प्राप्त तेल बालों की जड़ों में लगाने से बालों क गिरना बन्द होता है। नये बाल उगते हैं। बाल काले. चमकदार और घने होते हैं। उनकी जड़ें मजबूत होती हैं। फ्रांस में इसकी पत्तियों से निष्कर्षित तेल बालो में लगाने के लिए व्यवहार किया जाता है। फ्रांस में इसका उपयोग रोगाणु के संक्रमण से बचाव के लिए (as antibiotic) उत्तम माना जाता है। यह हर प्रकार के रोगाणुनाशक (antibiotic, anitiseptic), एवं जीवाणुनाशक (antiviral) औषधि स्रोत हैं। पेरीस के अस्पतालों में श्वॉस-क्रिया, और मूत्र संस्थान के सभी रोगों में इसका पर्याप्त व्यवहार किया जाता है। आमवात (arthritis or Rheu-matism, सन्धिवात (gout) की बीमारी में इसके तेलों का मालिश करने से अच्छा लाभ मिलता है। (वनो० चन्द्रो० भाग-I, पृष्ठ 133)


"ग्लॉसरी ऑफ इन्डियन मेडीसीनल प्लाण्टस" के पृष्ठ 173 पर इसके विभिन्न भागों से प्राप्त रासायनिक पदार्थों के गुण धर्म और क्रियाओं के सम्बन्ध में कही गई तथ्यपूर्ण बातें, साभार यहां अंकित है Leaves-astringent, conside-red useful in cerebral affection, especially epilepsy, also in dispe-psia, and deseases of stomach and liver.


Decoction of Icaves employed as mouth-wash in case of ophthae.; fruit-carminative, given in diarrhoea, dysentry, haemorrhage, internal ulceration and rheumatism.; Essential oil of leaves-antiseptic local application in rheumatism.; leaf applied inscorpiansting. इसकी क्रियाओं के विषय में कहा गया है कि - Possesses antibacterial activity against Gram-positive microorganism even in high dilution, not effecting most of the Gram-Negative microorganism.


डा० नॉडकरनी ने उपड़ोक्त सभी कथनों से अपनी सहमति व्यक्त करते हुए इसके रासायनिक पदार्थों को उत्तेजक और सकोचक क्रिया वाला बतलाया है।

कर्नल चोपड़ा के मतानुसार इसके रसायन संकोचक, उत्तेजक, रोगाणु नाशक मूत्रल, कफ्फोत्सारक, चर्मदाहशामक क्रिया वाली औषधि है (बनौ० चन्द्रो० भाग -प्रथम, पृष्ठ 133),


10. वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरूप - औषधीय कार्यों के लिए इस वनस्पति की पत्तियों के इत्र (Essence), तेल, इन्फ्यूजन, तरल सत्व, पेस्ट, टिंक्चर, सीरप, मल्ह्म आदि कई रूपों में व्यवहार प्रचलित है। इलेक्ट्रो होम्यो पैथी इस की औषधि विन्यास के लिए इन वनस्पति की पत्तियों के टिक्चर व्यवहार किए जाते हैं।


11. टिप्पणी - वनस्पति की 100 कि० ग्राम पत्तियों, फूलों, और फलों ने औसतन 10 ग्राम इत्र की प्रांति होती है। इत्र का रंग पीला, सुगन्धित और घनत्व 0.9 ग्रा०/मी०ली० होता है। इसके पौधा से प्राप्त माईर्टाल नामक रसायन मसूड़ों (gums) के प्रवाह, सूजन और रक्त साथ की चिकित्सा के लिए व्यवहार किया जात है। इस प्रकार के रोगों को गींजी गंबाइटीस (gingivitis) कहा जाता हैं। हाल के शोधों से ज्ञात हुआ है कि इस वनस्पति से प्राप्त रसायन अतिसूक्ष्म मात्रा में भी एण्टीवायोटिक गुण और क्रिया प्रकट करते हैं। पूर्व की कण्डिका नौ में उल्लिखित सभी गुण. धर्म और क्रियाएँ वनस्पति के सेकेन्डरी प्रोडक्टस की क्रियाएँ हैं, जिन्हे हम वनस्पति के थेरॉप्यूटिक्स के नाम से जानते हैं। इसके इन रसायनों के सभी गुण धर्म और क्रियाएँ वनस्पति के प्राइमरी प्रोडक्ट्स (कार्बनिक उत्प्रेरक = इनमे हारमोनम और एंजाइम्म शामिल है। के कारण पायी जाती है। कार्बनिक उत्प्रेरकों में बदलाव आ जाने से रसायनों के साथ-साथ उनकी क्रियाएँ भी बदल जाती है। तात्पर्य है कि ये कार्बनिक उत्प्रेरक ही वनस्पतियों के मौलिक सक्रीय घटक होते हैं।


12. भारतीय विकल्प -  मेहदी भारत में सर्वत्र पायी जाने वाली वनस्पति है। इसके विकल्प की आवश्यकता नहीं है।

ads

ads

Post Top Ad