वनस्पति का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - Cochlearia Officinalis Linnious है।
विभिन्न भाषाओं में इस वनस्पति का प्रचलित नाम - अंग्रेजी में Scurvy grass, Spoon wort, Scorbute grass, इसकी जड़ को आंग्ल भाषा में Horseradis कहा जाता है काकलेआरिया की यह जाती (ऑफिसीनेलीस) भारत में अनुपलब्ध है। यह पूर्वी यूरोप के दलदली क्षेत्रों का आदिवासी है भारत में पाए जाने वाली मूल की काकलेआरिया की जाती Armoracia Linnious के नाम से जानी जाती है।
वंश - भारतकी सम्पदा खण्ड 2 पृष्ठ 55 तथा ए डिक्शनरी ऑफ़ प्लांट्स यूज्ड वाई मैन के पृष्ठ 163 पर इस वनस्पति को क्रूसीफेरि (Cruciferae) वंश का सदस्य बताया। परन्तु वर्त्तमान दशक 1991 में प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय नई दिल्ली भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ कोम्पेंडियम ऑफ़ इंडियन मेडीसीनल प्लांट के खण्ड 2 पृष्ठ 199 पर इस वनस्पति को Brassicacae कुल का सदस्य बताया गया है।
निवास -यह वनस्पति पूर्वी यूरोप के दलदली क्षेत्रों का मूल निवासी है यह थोड़ी मात्रा में उत्तर और दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में भी बाग बगीचों में उगायी जाती है भूमध्य एशिया में यह वनस्पति अधिक मात्रा में पायी जाती है। भारत में इसकी तीन जातीय पाए जाने की सूचना है। इसकी अन्य जातीय उत्तरी भूमध्य, दक्षिण से पूरब हिमालय के क्षेत्रों में तथा जावा के पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती है Cochlearia Armoracia को ही Armoracia Lapathifolia gilib भी कहते है। तीसरी जाती का Cochlearia fleva bukhnan haimiltan yex raxbarg यह एक वर्षीय बूटी है जो गंगा की घाटियों में पायी जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक अरोमिल चिकना (Glabrous) मांसल या दलदार बारहमासी (Perennial) वनस्पति है इसकी पत्तिया पैनिकुलेट (Panniculate) होती है। इसके फूल पिले रंग के होते है फूलो के आधार पर 5 अदद परिदल (Sepals) समान रूप में फैले हुए होते है। सम्पूर्ण पुष्पदल (Petals) हल्का चंगुलदार (Clawd) होते है। इसके फलों के बीज कोष (Pods) अरोमिल और अंडाकार (Oval) होते है। इसके फलो में क्रमबद्ध दो अदद चिपके हुवे (Compressed) बीज होते है। इस वनस्पति के नए पौधे ताज़ी जड़ों की खंडो या टुकड़ो से उगाये जाते है। इसकी जड़े कंदील व् बेलनाकार होती है इसके परिपक्व जड़ों की लम्बाई 30 सेंटीमीटर और व्यास 18 से 2.5 सेंटीमीटर तक होती है।
औषधीय कार्य हेतु पौधा का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए पौधे की जड़े, पत्तियाँ, पुष्पित शाखाग्र या शीर्षो को सामान्य तापमान पर सूखा लेने के बाद व्यवहार किया जाता है। पौधों के इन अंगो का संग्रहण पुष्पण काल में किया जाता है।
पौधा से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - इस वनस्पति में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेटस, रफेज और क्षार, टैनिन, एसेंशियल आयल, ग्लाइकोसाइड, सिनिग्रिन,और माइरोसीन नामक एंजाइम पाए जाते है। इसकी जड़ में प्रचुर मात्रा में विटामिन C पाया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म और शारीरिक क्रियाये - इस वनस्पति के टिंक्चर से कुल्ला करने या गरारा करने से मसूड़ों से रक्त या पीव आना बंद होकर मसूड़े पुष्ट हो जाते है। इसकी पत्तियों का क्वाथ एक या दो चम्मच दिन में तीन बार अनुपान करने से स्कर्वी रोधक, आमवात नाशक, सन्धिवात और पुराने चर्म रोगो में अच्छा लाभकारी पाया गया है। इसके रासायनिक पदार्थ रोगाणुओं और जीवाणुओं की वृद्धि को रोकते है। तथा शरीर को इनसे सुरक्षित रखते है। इस वनस्पति के रसायन उद्दीपक (Stimulant), स्वेदकारी (Diaphoretic),मूत्रल (Diuretic), पाचक (Digestive) समझे जाते है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति की पत्तियों, जड़ों, का क्वाथ (Decoction), इन्फ्यूजन, टिंक्चर, तरल सत्व (Fluid extract) आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
Pic credit - Google/https://de.wikipedia.org |
विभिन्न भाषाओं में इस वनस्पति का प्रचलित नाम - अंग्रेजी में Scurvy grass, Spoon wort, Scorbute grass, इसकी जड़ को आंग्ल भाषा में Horseradis कहा जाता है काकलेआरिया की यह जाती (ऑफिसीनेलीस) भारत में अनुपलब्ध है। यह पूर्वी यूरोप के दलदली क्षेत्रों का आदिवासी है भारत में पाए जाने वाली मूल की काकलेआरिया की जाती Armoracia Linnious के नाम से जानी जाती है।
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वंश - भारतकी सम्पदा खण्ड 2 पृष्ठ 55 तथा ए डिक्शनरी ऑफ़ प्लांट्स यूज्ड वाई मैन के पृष्ठ 163 पर इस वनस्पति को क्रूसीफेरि (Cruciferae) वंश का सदस्य बताया। परन्तु वर्त्तमान दशक 1991 में प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय नई दिल्ली भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ कोम्पेंडियम ऑफ़ इंडियन मेडीसीनल प्लांट के खण्ड 2 पृष्ठ 199 पर इस वनस्पति को Brassicacae कुल का सदस्य बताया गया है।
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निवास -यह वनस्पति पूर्वी यूरोप के दलदली क्षेत्रों का मूल निवासी है यह थोड़ी मात्रा में उत्तर और दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में भी बाग बगीचों में उगायी जाती है भूमध्य एशिया में यह वनस्पति अधिक मात्रा में पायी जाती है। भारत में इसकी तीन जातीय पाए जाने की सूचना है। इसकी अन्य जातीय उत्तरी भूमध्य, दक्षिण से पूरब हिमालय के क्षेत्रों में तथा जावा के पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती है Cochlearia Armoracia को ही Armoracia Lapathifolia gilib भी कहते है। तीसरी जाती का Cochlearia fleva bukhnan haimiltan yex raxbarg यह एक वर्षीय बूटी है जो गंगा की घाटियों में पायी जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक अरोमिल चिकना (Glabrous) मांसल या दलदार बारहमासी (Perennial) वनस्पति है इसकी पत्तिया पैनिकुलेट (Panniculate) होती है। इसके फूल पिले रंग के होते है फूलो के आधार पर 5 अदद परिदल (Sepals) समान रूप में फैले हुए होते है। सम्पूर्ण पुष्पदल (Petals) हल्का चंगुलदार (Clawd) होते है। इसके फलों के बीज कोष (Pods) अरोमिल और अंडाकार (Oval) होते है। इसके फलो में क्रमबद्ध दो अदद चिपके हुवे (Compressed) बीज होते है। इस वनस्पति के नए पौधे ताज़ी जड़ों की खंडो या टुकड़ो से उगाये जाते है। इसकी जड़े कंदील व् बेलनाकार होती है इसके परिपक्व जड़ों की लम्बाई 30 सेंटीमीटर और व्यास 18 से 2.5 सेंटीमीटर तक होती है।
औषधीय कार्य हेतु पौधा का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए पौधे की जड़े, पत्तियाँ, पुष्पित शाखाग्र या शीर्षो को सामान्य तापमान पर सूखा लेने के बाद व्यवहार किया जाता है। पौधों के इन अंगो का संग्रहण पुष्पण काल में किया जाता है।
पौधा से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - इस वनस्पति में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेटस, रफेज और क्षार, टैनिन, एसेंशियल आयल, ग्लाइकोसाइड, सिनिग्रिन,और माइरोसीन नामक एंजाइम पाए जाते है। इसकी जड़ में प्रचुर मात्रा में विटामिन C पाया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म और शारीरिक क्रियाये - इस वनस्पति के टिंक्चर से कुल्ला करने या गरारा करने से मसूड़ों से रक्त या पीव आना बंद होकर मसूड़े पुष्ट हो जाते है। इसकी पत्तियों का क्वाथ एक या दो चम्मच दिन में तीन बार अनुपान करने से स्कर्वी रोधक, आमवात नाशक, सन्धिवात और पुराने चर्म रोगो में अच्छा लाभकारी पाया गया है। इसके रासायनिक पदार्थ रोगाणुओं और जीवाणुओं की वृद्धि को रोकते है। तथा शरीर को इनसे सुरक्षित रखते है। इस वनस्पति के रसायन उद्दीपक (Stimulant), स्वेदकारी (Diaphoretic),मूत्रल (Diuretic), पाचक (Digestive) समझे जाते है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति की पत्तियों, जड़ों, का क्वाथ (Decoction), इन्फ्यूजन, टिंक्चर, तरल सत्व (Fluid extract) आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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