पौधा का बैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का बैज्ञानिक नाम Aesculus Hippocastanum Linnious है।
Aesculus Hippocastanum Linnious को Chestnut भी कहा जाता है इसकी दो प्रजातियां भारत में उपलब्ध है। दूसरी प्रजाति Aesculus Indica Coleber इन दोनों जातियों के वृक्षों का विन्यास, उनके प्राप्त औषधीय पदार्थो के गुण, धर्म और प्रभाव एक सादृस्य है।
विभिन्न भाषाओं में इस वनस्पति का प्रचलित नाम - Aesculus Indica Coleber ex Camb. को हिंदी भाषा में बंखोर, पांगर, गुगु, कनोर, और पंकर के नाम से जानते है। काश्मीरी में इसे हाने, हुनुदुन, काकरा, कुमाऊं में किशिंग, पंकर और पंजाबी में बनखोर, खनोर आदि नामो से जाना जाता है।
वंश - यह Hippocastanaceae कुल का वृक्ष है दक्षिणी पूर्वी यूरोप में इसकी पांच जातीय तथा भारत और एशिया में सात प्रजातियां पाई जाती है।
निवास - इसका वृक्ष सारे यूरोप में फ़ैल गया है एशिया में यह सिन्ध से नेपाल तक, कश्मीर, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में साधारणतया उर्वर, आर्ध, छायादार खण्डों और पहाड़ियों के शिखरों पर 1200 से 3000 मीटर की ऊंचाई में उगे हुए पाये जाते है।
वनस्पति का वर्णन - यह एक विशाल पतझड़ी वृक्ष है इसकी ऊंचाई 30 मीटर तक तथा तना का घेरा 3 मीटर तक पाया जाता है इसका मुख्य तना छोटा, सीधा,और बेलनाकार, शिखर विस्तृत और शाखाएँ झुकी हुई होती है इसकी ताज़ी कटी लकड़ी सफ़ेद या गुलाबी पीताभ श्वेत होती है। हवा लगने पर गुलाबी तथा श्वेत आभा भूरी हो जाती है। इसके वृष के छाल रुखड़ी,संकरी, गहरी धारियों वाली होती है। इसकी पत्तिया हथेली की आकार की संरचना में यौगिक होती है पत्तियों के शिखर तीक्षण, नुकीले, और किनारे दांतेदार होते है।
औषधीय के लिए उपयोगित भाग - औषधीय के लिए इस वृक्ष की छाल फलो के छिलके और बीज को प्रयोग में लाया जाता है।
औषधीय उपयोगी अंगो से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इसकी वृक्ष की छाल में इस्कूलीन, क्षार, टैनिन एंजाइम और फलो के छिलको में Etherial oil, Saponin, Pectin, पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस, एंजाइम तथा बीजो में Phyotosterol, Starch, Sugar, Linolic acid, Palmitic acid, Stearic acid,और एंजाइम्स पाए जाते है।
रासायनिक यौगिकों के गुण, धर्मऔर मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाएँ - इसके बीज को कुछ जगहों पर आटा बना कर घरेलु प्रयोग में लाया जाता है। इसकी छाल से प्राप्त रासायनिक पदार्थ स्राव और स्राव प्रवाह को रोकने या कम करने वाले (Astringent) होते है। ये रक्त वाहनियों को फैलाने वाले (Vascoconstrictive) होते है। तात्पर्य है की इसके व्यवहार से रक्त चाप को कम करने वाले (Hypotensiv) होते है। और शरीर में कही भी होने वाले संचयन (Congestion) को दूर करते है अर्थात ये संचयन से मुक्ति दिलाने वाले (Decongestant) होते है।
उपरोक्त कथनों से स्पष्ट है की इसके टिंक्चर का व्यवहार ज्वर(Fever ), आमवात वेदना, गठिया (Gaut) ,उच्च रक्त चाप (Hypertention), खुनी बवासीर (Pills), अतिसार, पेचिस, कमर का दर्द स्नायूशूल (Nerv Pain) आदि नाशक होते है।
इसके औषधीय को अधिक व्यवहार करने से व्यक्ति की प्रकृति उच्च रक्त चाप वाली हो जाती है।
इसके औषधीय को प्रयोग करने के तरीके - इस औषधीय के छाल, फल के छिलको, और बीजो को काढ़ा (Decoction), चूर्ण (Powder), टिंक्चर (Tincture), ऑइंटमेंट (Ointment) और तरल अर्क के रूपों में किया जाता है। इसके भुने हुए बीज कॉफी की तरह व्यवहार किये जाते जाते है।
Pic credit - Google/https://ast.wikipedia.org |
Aesculus Hippocastanum Linnious को Chestnut भी कहा जाता है इसकी दो प्रजातियां भारत में उपलब्ध है। दूसरी प्रजाति Aesculus Indica Coleber इन दोनों जातियों के वृक्षों का विन्यास, उनके प्राप्त औषधीय पदार्थो के गुण, धर्म और प्रभाव एक सादृस्य है।
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विभिन्न भाषाओं में इस वनस्पति का प्रचलित नाम - Aesculus Indica Coleber ex Camb. को हिंदी भाषा में बंखोर, पांगर, गुगु, कनोर, और पंकर के नाम से जानते है। काश्मीरी में इसे हाने, हुनुदुन, काकरा, कुमाऊं में किशिंग, पंकर और पंजाबी में बनखोर, खनोर आदि नामो से जाना जाता है।
वंश - यह Hippocastanaceae कुल का वृक्ष है दक्षिणी पूर्वी यूरोप में इसकी पांच जातीय तथा भारत और एशिया में सात प्रजातियां पाई जाती है।
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निवास - इसका वृक्ष सारे यूरोप में फ़ैल गया है एशिया में यह सिन्ध से नेपाल तक, कश्मीर, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में साधारणतया उर्वर, आर्ध, छायादार खण्डों और पहाड़ियों के शिखरों पर 1200 से 3000 मीटर की ऊंचाई में उगे हुए पाये जाते है।
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वनस्पति का वर्णन - यह एक विशाल पतझड़ी वृक्ष है इसकी ऊंचाई 30 मीटर तक तथा तना का घेरा 3 मीटर तक पाया जाता है इसका मुख्य तना छोटा, सीधा,और बेलनाकार, शिखर विस्तृत और शाखाएँ झुकी हुई होती है इसकी ताज़ी कटी लकड़ी सफ़ेद या गुलाबी पीताभ श्वेत होती है। हवा लगने पर गुलाबी तथा श्वेत आभा भूरी हो जाती है। इसके वृष के छाल रुखड़ी,संकरी, गहरी धारियों वाली होती है। इसकी पत्तिया हथेली की आकार की संरचना में यौगिक होती है पत्तियों के शिखर तीक्षण, नुकीले, और किनारे दांतेदार होते है।
औषधीय के लिए उपयोगित भाग - औषधीय के लिए इस वृक्ष की छाल फलो के छिलके और बीज को प्रयोग में लाया जाता है।
औषधीय उपयोगी अंगो से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इसकी वृक्ष की छाल में इस्कूलीन, क्षार, टैनिन एंजाइम और फलो के छिलको में Etherial oil, Saponin, Pectin, पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस, एंजाइम तथा बीजो में Phyotosterol, Starch, Sugar, Linolic acid, Palmitic acid, Stearic acid,और एंजाइम्स पाए जाते है।
रासायनिक यौगिकों के गुण, धर्मऔर मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाएँ - इसके बीज को कुछ जगहों पर आटा बना कर घरेलु प्रयोग में लाया जाता है। इसकी छाल से प्राप्त रासायनिक पदार्थ स्राव और स्राव प्रवाह को रोकने या कम करने वाले (Astringent) होते है। ये रक्त वाहनियों को फैलाने वाले (Vascoconstrictive) होते है। तात्पर्य है की इसके व्यवहार से रक्त चाप को कम करने वाले (Hypotensiv) होते है। और शरीर में कही भी होने वाले संचयन (Congestion) को दूर करते है अर्थात ये संचयन से मुक्ति दिलाने वाले (Decongestant) होते है।
उपरोक्त कथनों से स्पष्ट है की इसके टिंक्चर का व्यवहार ज्वर(Fever ), आमवात वेदना, गठिया (Gaut) ,उच्च रक्त चाप (Hypertention), खुनी बवासीर (Pills), अतिसार, पेचिस, कमर का दर्द स्नायूशूल (Nerv Pain) आदि नाशक होते है।
इसके औषधीय को अधिक व्यवहार करने से व्यक्ति की प्रकृति उच्च रक्त चाप वाली हो जाती है।
इसके औषधीय को प्रयोग करने के तरीके - इस औषधीय के छाल, फल के छिलको, और बीजो को काढ़ा (Decoction), चूर्ण (Powder), टिंक्चर (Tincture), ऑइंटमेंट (Ointment) और तरल अर्क के रूपों में किया जाता है। इसके भुने हुए बीज कॉफी की तरह व्यवहार किये जाते जाते है।
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