पौधे का बैज्ञानिक नाम - Allium Cepa Linnious बैज्ञानिक नाम है हिंदी भाषा में इसे प्याज, कांदा, लाल प्याज के नाम से जाना जाता है। दुनियाँ में सब लोग इससे परिचित होंगे क्युकी ये हमारे किचन में पाया जाता है
वंश - यह एलीएसी (Alliaceae)प्रजाति की औषधीय है। इस वंश की लगभग 450 प्रजातियां पायी जाती है।
निवास - यद्पि यह पौधा परसिय का मूल निवासी है फिर भी इसका मूल स्थान उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्र है। यूरोप, एशिया, और सम्पूर्ण भारत में इसकी खेती घरेलु उपयोग के लिए की जाती है।
पौधा वर्णन - यह एक वर्षीय बूटी है इसकी पत्तिया लम्बोत्तरी खोखली दलदार और बेलन की आकृत की होती है। इसकी कंदील जड़े मांसल शल्क की तहो से घाघरा की तरह आवेष्ठित रहती है। इस मांसल शल्को का रंग उजला, पीला, लाल,या बैगनी होता है। इसका तना खोखला और बेलन की तरह फुला हुवा होता है। इसकी लम्बाई लगभग 1 मीटर तक होती है। इसके फूल छोटे और गोलाकार छत्रक के रूप में रहते है। इसका रंग उजला या बैगनी होता है फूल के प्रौढ़ होने पर त्रिकोषकीय सम्पुटिका युक्त फल बनते है जिसमे छोटे - छोटे काले बीज होते है। इसके पुष्प शीर्षो पर पत्र कलिकाये भी निकल आती है। रंज के अनुसार इसके दो प्रकार होते होते है लाल और उजला, औषधीय के लिए लाल प्याज की व्याख्या ग्रंथो में की गई है जबकि आयुर्वेदिक मतानुसार उजला प्याज अधिक श्रेयकर बताया गया है।
औषधीय कार्य के लिए उपयोगित अंग - औषधीय कार्य के लिए इस बूटी की कंदील जड़े उपयोग की जाती है।
पौधा से प्राप्त रासायनिक यौगिक - प्याज के एक बड़े गाँठ में Moisture 86.6%, Protin 1.2%, Fait 0.1% से कम Carbohydrets 11.6%, Calcium 0.18%, Phosporas 0.05%, Iron 0.7 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम,विटामिन A 25 I.U और विटामिन C 25 I.U. (Internetional Unit) प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। ताजे गाँठ और पत्तियों से एक तीखे स्वाद और असुहावनी गंध का 0.005% वाष्पशील तेल प्राप्त होता है। अशोधित तेल का मुख्य रचक एलिल प्रोपिल डाईसल्फाइड है। औषधीय कार्यो के लिए इस बूटी के परिपक्व गाँठो का संग्रहण ग्रीष्म ऋतू के मध्य में किया जाता है।
रासायनिक पदार्थो के गुण, धर्म और क्रियाएँ - इस पौधे के टिंक्चर में उपलब्ध रासायनिक पदार्थ गुर्दो की कार्य क्षमता बढ़ाकर पेशाब की मात्रा बढ़ाते है। अर्थात इसकी क्रियाएँ शरीर पर Diuretic होती है। ये रोगाणुओं को नष्ट करते है या बढ़ने से रोकते है ये शरीर पर Antibiotic, Anti viral, और रक्त में सर्करा की मात्रा को कम (Hypoglycamiant) करते है। रक्त के बढे हुवे धमनी चाप को कम (Hypotensive) करते है। इसके रसायन शरीर के अतिरिक्त लवण को उत्सर्जित (Dechloruant) करने वाले होते है। इसके साथ ही ये शरीर से पथरी नाशक, सन्धि दर्दो और गठिया रोग को दूर करने वाले होते है
इस बूटी के गाँठ से प्राप्त तजा रस Antiseptic, Antibiotic, Antiviral, (Alopecia), बालो का झड़ना, जैसी चिकित्सा करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है।
पौधा के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इसका व्यवहार काढ़ा या क्वाय, तरल, टिंक्चर, पुल्टिस, ताजा रस, ऑइंटमेंट आदि कई रूपों में किया जाता है।
Pic credit - Google/https://www.krishakjagat.org |
वंश - यह एलीएसी (Alliaceae)प्रजाति की औषधीय है। इस वंश की लगभग 450 प्रजातियां पायी जाती है।
Pic credit - Google/http://rashtriyaculture.com |
निवास - यद्पि यह पौधा परसिय का मूल निवासी है फिर भी इसका मूल स्थान उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्र है। यूरोप, एशिया, और सम्पूर्ण भारत में इसकी खेती घरेलु उपयोग के लिए की जाती है।
पौधा वर्णन - यह एक वर्षीय बूटी है इसकी पत्तिया लम्बोत्तरी खोखली दलदार और बेलन की आकृत की होती है। इसकी कंदील जड़े मांसल शल्क की तहो से घाघरा की तरह आवेष्ठित रहती है। इस मांसल शल्को का रंग उजला, पीला, लाल,या बैगनी होता है। इसका तना खोखला और बेलन की तरह फुला हुवा होता है। इसकी लम्बाई लगभग 1 मीटर तक होती है। इसके फूल छोटे और गोलाकार छत्रक के रूप में रहते है। इसका रंग उजला या बैगनी होता है फूल के प्रौढ़ होने पर त्रिकोषकीय सम्पुटिका युक्त फल बनते है जिसमे छोटे - छोटे काले बीज होते है। इसके पुष्प शीर्षो पर पत्र कलिकाये भी निकल आती है। रंज के अनुसार इसके दो प्रकार होते होते है लाल और उजला, औषधीय के लिए लाल प्याज की व्याख्या ग्रंथो में की गई है जबकि आयुर्वेदिक मतानुसार उजला प्याज अधिक श्रेयकर बताया गया है।
औषधीय कार्य के लिए उपयोगित अंग - औषधीय कार्य के लिए इस बूटी की कंदील जड़े उपयोग की जाती है।
पौधा से प्राप्त रासायनिक यौगिक - प्याज के एक बड़े गाँठ में Moisture 86.6%, Protin 1.2%, Fait 0.1% से कम Carbohydrets 11.6%, Calcium 0.18%, Phosporas 0.05%, Iron 0.7 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम,विटामिन A 25 I.U और विटामिन C 25 I.U. (Internetional Unit) प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। ताजे गाँठ और पत्तियों से एक तीखे स्वाद और असुहावनी गंध का 0.005% वाष्पशील तेल प्राप्त होता है। अशोधित तेल का मुख्य रचक एलिल प्रोपिल डाईसल्फाइड है। औषधीय कार्यो के लिए इस बूटी के परिपक्व गाँठो का संग्रहण ग्रीष्म ऋतू के मध्य में किया जाता है।
रासायनिक पदार्थो के गुण, धर्म और क्रियाएँ - इस पौधे के टिंक्चर में उपलब्ध रासायनिक पदार्थ गुर्दो की कार्य क्षमता बढ़ाकर पेशाब की मात्रा बढ़ाते है। अर्थात इसकी क्रियाएँ शरीर पर Diuretic होती है। ये रोगाणुओं को नष्ट करते है या बढ़ने से रोकते है ये शरीर पर Antibiotic, Anti viral, और रक्त में सर्करा की मात्रा को कम (Hypoglycamiant) करते है। रक्त के बढे हुवे धमनी चाप को कम (Hypotensive) करते है। इसके रसायन शरीर के अतिरिक्त लवण को उत्सर्जित (Dechloruant) करने वाले होते है। इसके साथ ही ये शरीर से पथरी नाशक, सन्धि दर्दो और गठिया रोग को दूर करने वाले होते है
इस बूटी के गाँठ से प्राप्त तजा रस Antiseptic, Antibiotic, Antiviral, (Alopecia), बालो का झड़ना, जैसी चिकित्सा करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है।
पौधा के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इसका व्यवहार काढ़ा या क्वाय, तरल, टिंक्चर, पुल्टिस, ताजा रस, ऑइंटमेंट आदि कई रूपों में किया जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें