पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Erythraea Centaurium Hil है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में चिरायता,बंगाली में गिमा, गिरमी, मराठी में लंतक, गुजराती भाषा में किरियात, मलयालम में तूपोरु प्पेन्पुल्ल, और अंग्रेजी भाषा में Centaury herb कहते है।
वंश - यह Gentianaceae कुल का औषधीय पौधा सदस्य है।
निवास - यह पौधा सम्पूर्ण विश्व में विस्तृत रूप से फैली हुई है। फिर भी उष्ण कटिबन्ध और दक्षिण अफ्रीका में यह वनस्पति नहीं पाई जाती है। मुख्यतया समशीतोष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यह वनस्पति सर्वत्र पाई जाती है। यह सम्पूर्ण भारत में लगभग 2000 फिट की चढ़ाई तक खेती योग्य भूमि में सामान्य रूप से पाई जाती है। औषधीय रूप में यह बंगाल प्रदेश में अधिक व्यवहार की जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह सीधा खड़ा लगभग 30 सेंटीमीटर ऊंचाई वाली बूटी है। यह सुन्दर एक वर्षीय बूटी है। जिसकी मुलज पत्तिया अंडाकार या दीर्घ वृतीय लगभग 25 सेंटीमीटर लम्बी होती है। इसकी पत्तिया स्तम्भिक छोटी और रैखीय आयताकार होती है। इसके फूल सफ़ेद और गुलाबी द्रीभाजी Terminal पर खिलते है। इसके फल भी छोटे और बारीक होते है। पौधों पर फूल जुलाई और अक्टूबर माह के बिच लगता है। सम्पूर्ण पौधा स्वाद में तिक्त और कडुआ होता है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की जड़ छोड़कर सम्पूर्ण पुष्पित शाखाग्र, पत्तिया एवं डंठल छाया शुष्क के बाद उपयोग किया जाता है। पौधे का संकलन फूल खिलने के बाद अक्टूबर माह बीतने के पूर्व कर लिया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Centeopierin, Erythero centaurin, और अति अल्प मात्रा में Essential oil, Resin, Enzyme और Nikotinic acid आदि पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ यकृत और तिल्ली सहित सम्पूर्ण पाचन क्रिया पर अपनी प्रभाव रखती है। इसका उपयोग ज्वर की चिकित्सा में भी किया जाता है। इसके रसायन टॉनिक, सुधावर्द्धक, और ज्वरनाशी होते है। इसके रसायन शरीर के तापमान को नियमित रखते है। The Mechanism of heat regulation से स्पष्ट है, की इसके रासायनिक पदार्थो की प्रत्यक्ष क्रिया मस्तिष्क के "हाइपोथैलमस" नामक अंग पर है। हाइपोथैलमस के द्वारा ही शरीर की अन्य कई महत्वपूर्ण क्रियाएँ यथा भूख, प्यास, कामेच्छा आदि का संचालन और नियमन होता है। इस प्रकार इस पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थ भूख, प्यास, सेक्स आदि कई प्रमुख क्रियाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव तंत्रिका तंत्र के माध्यम से रखती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), Powdar, Ointment आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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Pic credit - Google/https://commons.wikimedia.org/wiki/Centaurium |
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Pic credit - Google/https://commons.wikimedia.org/ |
वंश - यह Gentianaceae कुल का औषधीय पौधा सदस्य है।
निवास - यह पौधा सम्पूर्ण विश्व में विस्तृत रूप से फैली हुई है। फिर भी उष्ण कटिबन्ध और दक्षिण अफ्रीका में यह वनस्पति नहीं पाई जाती है। मुख्यतया समशीतोष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यह वनस्पति सर्वत्र पाई जाती है। यह सम्पूर्ण भारत में लगभग 2000 फिट की चढ़ाई तक खेती योग्य भूमि में सामान्य रूप से पाई जाती है। औषधीय रूप में यह बंगाल प्रदेश में अधिक व्यवहार की जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह सीधा खड़ा लगभग 30 सेंटीमीटर ऊंचाई वाली बूटी है। यह सुन्दर एक वर्षीय बूटी है। जिसकी मुलज पत्तिया अंडाकार या दीर्घ वृतीय लगभग 25 सेंटीमीटर लम्बी होती है। इसकी पत्तिया स्तम्भिक छोटी और रैखीय आयताकार होती है। इसके फूल सफ़ेद और गुलाबी द्रीभाजी Terminal पर खिलते है। इसके फल भी छोटे और बारीक होते है। पौधों पर फूल जुलाई और अक्टूबर माह के बिच लगता है। सम्पूर्ण पौधा स्वाद में तिक्त और कडुआ होता है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की जड़ छोड़कर सम्पूर्ण पुष्पित शाखाग्र, पत्तिया एवं डंठल छाया शुष्क के बाद उपयोग किया जाता है। पौधे का संकलन फूल खिलने के बाद अक्टूबर माह बीतने के पूर्व कर लिया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Centeopierin, Erythero centaurin, और अति अल्प मात्रा में Essential oil, Resin, Enzyme और Nikotinic acid आदि पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ यकृत और तिल्ली सहित सम्पूर्ण पाचन क्रिया पर अपनी प्रभाव रखती है। इसका उपयोग ज्वर की चिकित्सा में भी किया जाता है। इसके रसायन टॉनिक, सुधावर्द्धक, और ज्वरनाशी होते है। इसके रसायन शरीर के तापमान को नियमित रखते है। The Mechanism of heat regulation से स्पष्ट है, की इसके रासायनिक पदार्थो की प्रत्यक्ष क्रिया मस्तिष्क के "हाइपोथैलमस" नामक अंग पर है। हाइपोथैलमस के द्वारा ही शरीर की अन्य कई महत्वपूर्ण क्रियाएँ यथा भूख, प्यास, कामेच्छा आदि का संचालन और नियमन होता है। इस प्रकार इस पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थ भूख, प्यास, सेक्स आदि कई प्रमुख क्रियाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव तंत्रिका तंत्र के माध्यम से रखती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), Powdar, Ointment आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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