पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Eucalyptus Globulus Labill है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में यूकौलिप्टस, संस्कृत में तैलपर्णी, मद्रास में करपूरमारम और अंग्रेजी भाषा में Blue gum कहते है।
वंश - यह पौधा Myrtaceae कुल का वृक्ष है। इस वंश में इसकी लगभग 500 प्रजातियाँ है। आस्ट्रेलिया और तास्मानिया में इसकी दो या तीन ही प्रजातियाँ पाई जाती है।
निवास - यह पौधा आस्ट्रेलिया का मूल निवासी है। मुख्य रूप से दक्षिणी यूरोप और एशिया के देशों में इसकी खेती की जाती है। यद्यापि की आज आम तौर पर सम्पूर्ण विश्व में पाया जाता है। परन्तु मुख्य रूप से इसकी विभिन्न जातियों का विकास या संकरण आस्ट्रेलिया के एक विशेष जाती के वृक्ष से ही हुआ है। नीलगिरी की पहाड़ियों पर 5000 से 8300 फिट पर इसकी उपज अच्छी होती है। दक्षिणी भारत के अन्नामल्लई और पालनी की पहाड़ियों, शिमला पहाड़ियों 4000 से 7000 फिट पर तथा आसाम के शिलौंग क्षेत्रों में विशेष रूप से पाया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में भी वृक्ष अब सामान्य रूप से पाए जाते है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक बहुत बड़ा चिकना धड़ वाला लंबोत्तरा वृक्ष है। इसके तना से आसानी से इसके छिलके उतर जाते है। इसका छिलका मुलायम नीला रंग का होता है। इसकी विकसित पत्तिया हल्के भूरे निली रंग की खुशबूदार होती है। पूर्ण विकसित पत्तियों में थोड़ा परिवर्तन हो जाता है। उनका रंग अधिक भूरा हो जाता है। इसकी पत्तियाँ वृन्त विहीन जोड़े में डाली पर आमने सामने लगती है। पुरानी शाखाओं पर लगने वाली एकान्तर पत्तियाँ दृढ़ वृन्त वाली होती है। इसका आकार हासिए की तरह होती है। जिनके आधार नियमित आकार का होता है। इसके फूलों में अनेक पुंकेशर (Stamens) होते है। फूलों के बाह्यदल पुंज (Calyx) दल हीन (Apetalous) होते है। बाह्यदल पुंज का आकार प्याला जैसा (Cup like calyx) होता है। बाह्यदल पुंज में बाहर की ओर चार अदद पसलियों की तरह चीरा लगा होता है। और वे एक दूसरे से झिल्ली द्वारा बन्धकर प्याला जैसा आकार बनाते है इसी प्याला नुमा कैलिक्स में फूल का फैलाव रहता है। इसके फलो का निश्चित आकार होता है फलो में चर्मिली संम्पुटिका में अनेक बीज होते है इसकी पत्तियों में एक विशेष प्रकार की वाष्पशील तेल (Volatile oil) होता है। जिसके कारण पत्तिया खुशबूदार होती है। पत्तियों की अधिकता के कारण ही संस्कृत में इसके वृक्ष को "तैलपर्णी" कहा जाता है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की वृन्त रहित या डण्ठल रहित प्रौढ़ पत्तियाँ उपयोग की जाती है। पत्तियों का संकलन औषधिय के लिए जून से अक्टूबर माह तक किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे की पूर्ण विकसित प्रौढ़ पत्तियों में Cineol, Pinenesh, Sesquiterpens, नामक अल्केलायड और अल्प मात्रा में Aldehydes और अल्कोहल पाए जाते है इसकी पत्तियों में लगभग 80 प्रतिशत तक Eucalyptol नामक इसेन्सीयल आयल पाया जाता है। Hydrocarbons, Camphene, Kinos, Agulene, Enzymes, Tannin, Resin आदि भी इसकी पत्तियों में पाए जाते है। इसके फलो में Cysteine,Ornithine, Asparagine, Glycine, Glutamic acid, Threonine,आदि रसायन पाए जाते है। (Journalsci-Res.1971,3,1. Chemi-Abstr.1947,80,45669t.)
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ अफारे (Flatulence) को दूर करने वाले और कृमि नाशक होते है। भारतीय यूकोलिप्टस की पत्तियों से प्राप्त रासायनिक पदार्थ खांसी या फेफड़ो के अन्य रोग में अधिक उपयोगी प्रमाणित हुए है। (व. च. भाग II, पृष्ठ 75) यूकेलिप्टस से प्राप्त अनेक रासायनिक पदार्थो में इसका तेल एक प्रधान रसायन है जिसका सदियों से कफनिस्सारक (Expectorant) के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग जीवाणु नाशक (Antibiotic), एन्टीसेप्टिक और ज्वरनाशक (Antithermic) के रूप में किया जाता है। इस वनस्पति की पत्तियों से प्राप्त होने वाले रसायन ब्लड शुगर को कम करते है। इनकी शरीर पर (Hypoglycaemic) क्रिया होती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की पत्तियों का इन्फ्युजन (Infusion), क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-extract), चूर्ण (Powder), इत्र (Esseence) आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
Pic credit - Google/https://en.wikipedia.org |
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में यूकौलिप्टस, संस्कृत में तैलपर्णी, मद्रास में करपूरमारम और अंग्रेजी भाषा में Blue gum कहते है।
Pic credit - Google/https://pl.wikipedia.org |
वंश - यह पौधा Myrtaceae कुल का वृक्ष है। इस वंश में इसकी लगभग 500 प्रजातियाँ है। आस्ट्रेलिया और तास्मानिया में इसकी दो या तीन ही प्रजातियाँ पाई जाती है।
निवास - यह पौधा आस्ट्रेलिया का मूल निवासी है। मुख्य रूप से दक्षिणी यूरोप और एशिया के देशों में इसकी खेती की जाती है। यद्यापि की आज आम तौर पर सम्पूर्ण विश्व में पाया जाता है। परन्तु मुख्य रूप से इसकी विभिन्न जातियों का विकास या संकरण आस्ट्रेलिया के एक विशेष जाती के वृक्ष से ही हुआ है। नीलगिरी की पहाड़ियों पर 5000 से 8300 फिट पर इसकी उपज अच्छी होती है। दक्षिणी भारत के अन्नामल्लई और पालनी की पहाड़ियों, शिमला पहाड़ियों 4000 से 7000 फिट पर तथा आसाम के शिलौंग क्षेत्रों में विशेष रूप से पाया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में भी वृक्ष अब सामान्य रूप से पाए जाते है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक बहुत बड़ा चिकना धड़ वाला लंबोत्तरा वृक्ष है। इसके तना से आसानी से इसके छिलके उतर जाते है। इसका छिलका मुलायम नीला रंग का होता है। इसकी विकसित पत्तिया हल्के भूरे निली रंग की खुशबूदार होती है। पूर्ण विकसित पत्तियों में थोड़ा परिवर्तन हो जाता है। उनका रंग अधिक भूरा हो जाता है। इसकी पत्तियाँ वृन्त विहीन जोड़े में डाली पर आमने सामने लगती है। पुरानी शाखाओं पर लगने वाली एकान्तर पत्तियाँ दृढ़ वृन्त वाली होती है। इसका आकार हासिए की तरह होती है। जिनके आधार नियमित आकार का होता है। इसके फूलों में अनेक पुंकेशर (Stamens) होते है। फूलों के बाह्यदल पुंज (Calyx) दल हीन (Apetalous) होते है। बाह्यदल पुंज का आकार प्याला जैसा (Cup like calyx) होता है। बाह्यदल पुंज में बाहर की ओर चार अदद पसलियों की तरह चीरा लगा होता है। और वे एक दूसरे से झिल्ली द्वारा बन्धकर प्याला जैसा आकार बनाते है इसी प्याला नुमा कैलिक्स में फूल का फैलाव रहता है। इसके फलो का निश्चित आकार होता है फलो में चर्मिली संम्पुटिका में अनेक बीज होते है इसकी पत्तियों में एक विशेष प्रकार की वाष्पशील तेल (Volatile oil) होता है। जिसके कारण पत्तिया खुशबूदार होती है। पत्तियों की अधिकता के कारण ही संस्कृत में इसके वृक्ष को "तैलपर्णी" कहा जाता है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की वृन्त रहित या डण्ठल रहित प्रौढ़ पत्तियाँ उपयोग की जाती है। पत्तियों का संकलन औषधिय के लिए जून से अक्टूबर माह तक किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे की पूर्ण विकसित प्रौढ़ पत्तियों में Cineol, Pinenesh, Sesquiterpens, नामक अल्केलायड और अल्प मात्रा में Aldehydes और अल्कोहल पाए जाते है इसकी पत्तियों में लगभग 80 प्रतिशत तक Eucalyptol नामक इसेन्सीयल आयल पाया जाता है। Hydrocarbons, Camphene, Kinos, Agulene, Enzymes, Tannin, Resin आदि भी इसकी पत्तियों में पाए जाते है। इसके फलो में Cysteine,Ornithine, Asparagine, Glycine, Glutamic acid, Threonine,आदि रसायन पाए जाते है। (Journalsci-Res.1971,3,1. Chemi-Abstr.1947,80,45669t.)
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ अफारे (Flatulence) को दूर करने वाले और कृमि नाशक होते है। भारतीय यूकोलिप्टस की पत्तियों से प्राप्त रासायनिक पदार्थ खांसी या फेफड़ो के अन्य रोग में अधिक उपयोगी प्रमाणित हुए है। (व. च. भाग II, पृष्ठ 75) यूकेलिप्टस से प्राप्त अनेक रासायनिक पदार्थो में इसका तेल एक प्रधान रसायन है जिसका सदियों से कफनिस्सारक (Expectorant) के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग जीवाणु नाशक (Antibiotic), एन्टीसेप्टिक और ज्वरनाशक (Antithermic) के रूप में किया जाता है। इस वनस्पति की पत्तियों से प्राप्त होने वाले रसायन ब्लड शुगर को कम करते है। इनकी शरीर पर (Hypoglycaemic) क्रिया होती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की पत्तियों का इन्फ्युजन (Infusion), क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-extract), चूर्ण (Powder), इत्र (Esseence) आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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