पौधे का बैज्ञानिक नाम - इस पौधा का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - Aconitum Napellus Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में प्रचलित नाम - इस पौधे को हिंदी में सफ़ेद बच्छनाग, संस्कृत में वत्सनाभ, पंजाबी में दूधिया विष, कहते है।
वंश - यह Ranunculaecae कुल का पौधा है।
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विभिन्न भाषाओ में प्रचलित नाम - इस पौधे को हिंदी में सफ़ेद बच्छनाग, संस्कृत में वत्सनाभ, पंजाबी में दूधिया विष, कहते है।
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वंश - यह Ranunculaecae कुल का पौधा है।
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निवासी - यह बूटी दक्षिणी बेल्स (Wels) के आर्द्ध और छायादार क्षेत्रों का मूल निवासी है। यह पृथ्वी के उत्तरी समशीतोष्ण क्षेत्रों में पायी जाती है। भारत में इसकी लगभग 24 जातीया पायी जाती है। यह हिमालय के एल्पीय और उप एल्पीय क्षेत्रों में कश्मीर से नेपाल और असम की पहाड़ियों में पायी जाती है। इसकी कंदील जड़े बहुत समय से चिकित्सा के लिए प्रयोग की जाती है। Aconitum Napellus भारत में नहीं है। इसके स्थान पर कई देशी जातीया Aconitum Ferox या वत्सनाभ के नाम से इसके स्थान पर व्यवहार की जाती है।
पौधा का वर्णन - यह एक बहुवर्षीय मांशल जड़ो वाली बूटी होती है। इसकी मूल जड़े नलिकाकार और पुत्री जड़े अनेक रोमिल छोटी छोटी जड़ो से युक्त होती है। इसका तना हरा रंग का होता है। पौधे की उचाई लगभग 5 फिट या 1.5 मीटर तक होता है। इसका तना बेलनाकार कड़ा और शायद ही कभी शाखा युक्त होता है। इसके पत्तियों की ऊपरी सतह गहरी हरे रंग की और निचे की सतहे सफेदी लिए हुए हरे रंग की होती है। फूल लगाने के समय पत्तियों के रंगो का ऐसा विन्यास नहीं रहता है। परिपक्व होने पर पत्तिया चिकनी और रोम विहीन होती चली जाती है। पत्तिया हथेली की आकार की पत्र वृन्तो से युक्त नक्कासीदार और शाखाओ पर एकान्तर होती है। इसके फूल गहरे रंग की द्रीलिंगी (Bisexual) होती है। पौधे के शाखाग्र पर फुलोकि सजावट अन्तस्थ पर गुच्छो के रूप में होती है। प्रत्येक फूलो में पांच से आठ पंखुडिया या पुष्पदल होते है। फूल के बाह्य दलपुंज में 5 परिदल होते है इसके फलो में कई उभार रहते है और इसके बीज छोटे छोटे होते है। बीजो का आकार चौड़ा, सपाट और सतह रुखड़ा या खुरदुरा होता है। इसकी खेती जड़ो के लिए की जाती है। Aconitum Napellus के स्थान पर भारत में Aconitum Chasmanthum Staff को इंडियन नैपेलस के नाम से जाना जाता है। मातृ कंदो पर गहरे खाच और झुर्रिया होती है। इसका रंग बाहर से काला भीतर से भूरा होता है पुत्री कंदे शंख बेलनी आकृत की होती है। इनका चौड़ा आधार 25 से 28 मिलीमीटर और मुटाई 12 से 18 मिलीमीटर होता है।
औषधीय उपयोग हेतु पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का मूल जड़े या पुत्री जड़े व्यवहार की जाती है। इसका संग्रहण ग्रीष्म और शरद ऋतूमें किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - इस पौधे के कांड में सामान्यतः Aconotine, Mesaconitine, Neopelline, Hypaconitine, Indaconitine, Aconitic acid, Malic acid, Acetic acid, पाए जाते है।
ए. फेरॉक्स की जड़ो में Bikhaconitine, Chasmaconitine, Indaconitine, Pesudaconitine पृथक किये गए।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण, धर्म और मानव शरीर पर उसका प्रभाव - इस पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थ वात और संधि दर्दो को दूर करने वाला प्रभाव रखते है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव स्नायु और स्नायु तंत्र पर उदार तथा उदार के अंगो पर एवं श्वसन तंत्र पर है।
यह साधारणतया न्यूरेल्जिया और गठिया के दर्दो में व्यवहार किया जाता है। स्थूल मात्रा में इसका बाह्य या आंतरिक प्रयोग खतरनाक है। इसका काढ़ा गुर्दे की पथरी और खुनी बवासीर की बहुत ही अच्छी औषधीय है। इसकी जड़ का व्यवहार गर्भाशय की आकुंचन क्रिया को बढ़ाने और प्रसव पीड़ा को दूर करने के लिए किया जाता है। बिच्छू डंक से उत्पन्न दर्द को आरोग्य करने के लिए इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - इस पौधे का टिंक्चर, अर्द्धतरल, सीरप, चूर्ण के रूप में व्यवहार किया जाता है।
Very best plant,this is a very successful medicin
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जवाब देंहटाएंBOC Sciences is a brand of BOCSCI Inc. We leverage our wide spectrum of business in the fields of development, manufacturing, marketing, and distribution to help you make best-informed decisions tailored to your evolving needs for premium chemicals. Indaconitine