पौधे का बैज्ञानिक नाम - इस पौधा का वैज्ञानिक या औषधीय नाम -Cetraria Islandica Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में इस औषधीय का प्रचलित नाम - इसे अंग्रेजी भाषा में Icelandic Moss और लैटिन भाषा में Cetraria Islandica Linnious कहते है। इस पौधे का अन्य नाम अनुपलब्ध है।
Pic credit - Google/https://commons.wikimedia.org |
विभिन्न भाषाओ में इस औषधीय का प्रचलित नाम - इसे अंग्रेजी भाषा में Icelandic Moss और लैटिन भाषा में Cetraria Islandica Linnious कहते है। इस पौधे का अन्य नाम अनुपलब्ध है।
Pic credit - Google/https://commons.wikimedia.org |
वंश - यह वनस्पति Parmeliaceae वंश का सदस्य है इस वंश में पायी जाने वाली जातियों की संख्या अनिश्चित है।
निवास - यह पर्वतो पर उगने वाली वनस्पति यूरोप के पहाड़ी क्षेत्रों का मूल निवासी है। यह सम्पूर्ण यूरोप के साथ साथ ब्रिटेन में भी पायी जाती है। आर्कटिक प्रदेशो में यह विशेष रूप से पायी जाती है। यध्यपि की भारत में यह वनस्पति उपलब्ध नहीं है फि वनस्पति का र भी, इस जाती की एक उपजातीय Cetraria Nivalis (Linnious) (Ach.) भारत में पायी जाती है। जिसके माउन्ट एवरेस्ट और नेपाल के ऊंचे पर्वतो पर पायी जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह पहाड़ी चट्टानों पर उगने वाली वनस्पति है Cetraria Islandica एक पराश्रयी जाती का शैवालीय वनस्पति है। जो पहाड़ी चट्टानों, दूसरे पेड़ो या पहाड़ी पत्थरो का सहारा लेकर खड़ी रहती है। यह पर्वतीय शैवाल हल्का ऊर्ध्वाधर एवं गंधहीन वनस्पति है। इसकी उचाई लगभग 3 इंच या 8 सेंटीमीटर होती है। यह वनस्पति विशेषकर कोनिफर जाती के वृक्ष की डालियो पर प्रायः अधिक देखि जाती है। यह एक ऐसी शैवालीय वनस्पति है जो आर्द्धतापूर्ण वातावरण में हरे पेड़ो और चट्टानों का सहारा लेकर जीवित रहते है। इसकी जड़, तना और पत्तियों में कोई भिन्नता नहीं होती है।
औषधीय कार्य हेतु पौधा का उपयोगित अंग - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति के Thailus व्यवहार किये जाते है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस वनस्पति के थैलस में Lichen starch, Cellulose, Mucilage, Sugar, Gum, Cetrarine, Potassium salts, Iron, Sodium, Magnnessium, Salicylic acid, Fumaric acid, Lichetenic acid, Usnic acid, Iodine Vitamin - A पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुण, धर्म और शारीरिक क्रियाये - इस वनस्पति के थैलस को पानी में उबाल कर जैली बनायीं जाती है जिसकी औषधीय क्रिया पौष्टिक और शान्तिदायक होती है। जख्म पूरक गुण इसमें पर्याप्त पाए जाते है स्थानीय लोगो द्वारा इसका इसका सम्पूर्ण पौधा रोटी बनाने में किया जाता है। यकृत की पित्त प्रणाली पर इसके रासायनिक पदार्थो की विशिष्ट क्रिया होती है। इसके रसायन दूध श्राव को बढ़ाते है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति का व्यवहार जैली, तरल, रोटी,चूर्ण, मल्हम आदि कई रूपों में प्रचलित है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें