पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Euphorbia Officinale Linnions है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में त्रिधारा, सेहुड़, थूहर, तिधारी, संस्कृत में बज्रकण्टका, त्रिधारस्नुहि, त्रिवस्त्रः धारास्नुहि, त्रिधारक, बज्री, गुजराती भाषा में तरधारो, थोर, तमिल भाषा में वचीरोम, मराठी में नरसाया, तिधारी, बंगला में तिक्टा, सीज, तेलगु में वोमजेमूडु, और अंग्रेजी भाषा में Triangular Spong कहते है।
वंश - यह पौधा Euphorbiaceae कुल का कांटेदार पौधा है। इस कुल में इसकी लगभग 200 प्रजातियां है।
निवास - साधारणतया इस पौधा की अनेक प्रजातियों का विश्व भर में दूर - दूर तक फैलाव है। परन्तु यह वनस्पति मुख्या रूप से उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की मूल निवासी है। यह एशिया के शीतोष्ण क्षेत्रों में भी, जैसे भारत, चीन और मलेशिया में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। भारत के सम्पूर्ण गर्म क्षेत्रों में यह पाई जाती है। सूखे भूभागों में 2000 फिट की चढाई तक पहाड़ियों में पाई जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - तिधारा सेहुड़ एक प्रसिद्ध औषधीय वनस्पति है कुछ स्थानों में इसे थूहर तिधारा भी कहा जाता है। यह एक बहु वर्षीय वनस्पति है। जो सरे भारत वर्ष में प्रायः सूखे स्थानों में पाई जाती है। डालिया तिधारी या पंचधारी कंटका पूर्ण होती है। इसकी शाखाओ पर बहुत छोटी - छोटी पत्तियाँ लगती है। इसके किसी - किसी पौधे में पत्तियों का अभाव भी पाया गया है। शरद ऋतु में इसकी सारी पत्तियाँ गिर जाती है। बसंत ऋतू के बाद शाखाओं पर नई पत्तियाँ आती है। इसी ऋतु में इसकी शाखाओ में नई कल्ले फुट कर नई शाखाएँ लगती है। देहाती क्षेत्रों में इसे सीज के नाम से भी जाना जाता है। इसकी पत्तियों, शाखाओं, लगभग सभी अंग पर चीरा लगाने या चोट करने या पत्तिया तोड़ने पर दूध के समान उजला रस निकलता है। इसे दूध कहा जाता है। इसमें फूल या बीज नहीं देखे गए है। इसके नए पौधे डालिया काट कर लगाए जाते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का पंचाग व्यवहार किये जाते है। मुख्य रूप से इसके तना से दूध ही औषधीय के लिए व्यवहार किये जाते है। प्रौढ़ वनस्पतियों से इसकी जड़े, डालिया, पत्तियाँ और दूध सभी ऋतुओ में संग्रह किये जाते है। वनस्पतियो को छाया शुष्क कर लेने के बाद ही उसका टिंक्चर निष्कर्षण के लिए उपयोग करना चाहिए।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Euphorbin, Enzymes, Triterpenoids, Taraxerol, Epi-friedelanon, Galic acid, Casentine, Phinalic acid, Essential oil, तथा अनेक एल्कलायड पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ कफ नाशक, ज्वर नाशक, स्वेदक विरेचक, पाचक, मूत्रल, शोथ नाशक, और रस - रक्त को शुद्ध करने वाले होते है। इसके रसायन बच्चों के श्वसन तंत्र के रोगों में व्यवहार करने का प्रचुर प्रचलन है। तेलगु लोग या भारत में इसकी शाखाओं का क्वाथ जीर्ण आमवात (Chronic neuralgic and joints pain) तथा उपदंश (Syphilis) में खूब व्यवहार किया जाता है। इसके रसायन स्नायुमण्डल की सभी बीमारियों, जलोदर (Dropsy) और बहरेपन (Deafness) की अचूक औषधीय मानी जाती है।
इसके रसायन Periodical fever कर्कट(Cancers) रोग, गैंग्रीन, अल्सर और मस्सा (Warts) को दूर करते है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), ताजा रस ही प्रयोग किया जाता है।
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विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में त्रिधारा, सेहुड़, थूहर, तिधारी, संस्कृत में बज्रकण्टका, त्रिधारस्नुहि, त्रिवस्त्रः धारास्नुहि, त्रिधारक, बज्री, गुजराती भाषा में तरधारो, थोर, तमिल भाषा में वचीरोम, मराठी में नरसाया, तिधारी, बंगला में तिक्टा, सीज, तेलगु में वोमजेमूडु, और अंग्रेजी भाषा में Triangular Spong कहते है।
वंश - यह पौधा Euphorbiaceae कुल का कांटेदार पौधा है। इस कुल में इसकी लगभग 200 प्रजातियां है।
निवास - साधारणतया इस पौधा की अनेक प्रजातियों का विश्व भर में दूर - दूर तक फैलाव है। परन्तु यह वनस्पति मुख्या रूप से उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की मूल निवासी है। यह एशिया के शीतोष्ण क्षेत्रों में भी, जैसे भारत, चीन और मलेशिया में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। भारत के सम्पूर्ण गर्म क्षेत्रों में यह पाई जाती है। सूखे भूभागों में 2000 फिट की चढाई तक पहाड़ियों में पाई जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - तिधारा सेहुड़ एक प्रसिद्ध औषधीय वनस्पति है कुछ स्थानों में इसे थूहर तिधारा भी कहा जाता है। यह एक बहु वर्षीय वनस्पति है। जो सरे भारत वर्ष में प्रायः सूखे स्थानों में पाई जाती है। डालिया तिधारी या पंचधारी कंटका पूर्ण होती है। इसकी शाखाओ पर बहुत छोटी - छोटी पत्तियाँ लगती है। इसके किसी - किसी पौधे में पत्तियों का अभाव भी पाया गया है। शरद ऋतु में इसकी सारी पत्तियाँ गिर जाती है। बसंत ऋतू के बाद शाखाओं पर नई पत्तियाँ आती है। इसी ऋतु में इसकी शाखाओ में नई कल्ले फुट कर नई शाखाएँ लगती है। देहाती क्षेत्रों में इसे सीज के नाम से भी जाना जाता है। इसकी पत्तियों, शाखाओं, लगभग सभी अंग पर चीरा लगाने या चोट करने या पत्तिया तोड़ने पर दूध के समान उजला रस निकलता है। इसे दूध कहा जाता है। इसमें फूल या बीज नहीं देखे गए है। इसके नए पौधे डालिया काट कर लगाए जाते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का पंचाग व्यवहार किये जाते है। मुख्य रूप से इसके तना से दूध ही औषधीय के लिए व्यवहार किये जाते है। प्रौढ़ वनस्पतियों से इसकी जड़े, डालिया, पत्तियाँ और दूध सभी ऋतुओ में संग्रह किये जाते है। वनस्पतियो को छाया शुष्क कर लेने के बाद ही उसका टिंक्चर निष्कर्षण के लिए उपयोग करना चाहिए।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Euphorbin, Enzymes, Triterpenoids, Taraxerol, Epi-friedelanon, Galic acid, Casentine, Phinalic acid, Essential oil, तथा अनेक एल्कलायड पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ कफ नाशक, ज्वर नाशक, स्वेदक विरेचक, पाचक, मूत्रल, शोथ नाशक, और रस - रक्त को शुद्ध करने वाले होते है। इसके रसायन बच्चों के श्वसन तंत्र के रोगों में व्यवहार करने का प्रचुर प्रचलन है। तेलगु लोग या भारत में इसकी शाखाओं का क्वाथ जीर्ण आमवात (Chronic neuralgic and joints pain) तथा उपदंश (Syphilis) में खूब व्यवहार किया जाता है। इसके रसायन स्नायुमण्डल की सभी बीमारियों, जलोदर (Dropsy) और बहरेपन (Deafness) की अचूक औषधीय मानी जाती है।
इसके रसायन Periodical fever कर्कट(Cancers) रोग, गैंग्रीन, अल्सर और मस्सा (Warts) को दूर करते है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), ताजा रस ही प्रयोग किया जाता है।
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