पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Ervum Lens Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में मसूर, बंगाली भाषा में मसूरी कलाएं, गुजराती भाषा में मसूर, संस्कृत में मसूर, मसूरक, मसूरा,मसूरिका, कल्याण बीज, पंजाबी भाषा में चंचिंग, भानहरी, मसूर, मोहि, मोहरी, तमिल भाषा में मिस्सूर, और अंग्रेजी भाषा में लेन्टाइल कहते है।
वंश - यह पौधा Leguminosae कुल का खाद्य (Eddible) पौधा है इस कुल में इसकी 10 प्रजातियाँ पाई जाती है।
निवास - यह पौधा दक्षिणी और पश्चिमी यूरोप तथा मध्य एशिया का मूल निवासी है। भारत के मध्य और पूर्वी राज्यों में दाल के लिए मुख्य आहार के रूप में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती भारत के साथ -साथ फ्रांस में भी की जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक दलहनी फसल है, जिसकी बोवाई नवम्बर में और कटाई मार्च-अप्रैल में होती है। पौधे की अधिकतम ऊंचाई 1 से 1.5 फिट तक होती है। इसका तना क्षीण, कोडीय (Angular) होता है तना बहुशाखीय होता है। शाखाओं पर पत्तियाँ एकान्तर रूप में पत्रवृन्त विहीन (Sessile) छह से सात की संख्या में लगती है। पत्तियाँ छोटी आकार लम्बोत्तरी अंडाकार होती है। इसकी जड़े सीधी और छोटी होती है। मुख्य डंठल या तना लरबरा लत्तर जैसा होता है। अधिक लम्बे पौधे जमीन पर गिरे रहते है इसके फल दो से तीन के समूह या गुच्छो में लगते है। फुलो के निचे वाली पंखुड़ियों का रंग नीला, हृदयाकार (Corodate) और थोड़ा-थोड़ा जीभीकाकार (Langulate) होता है। फूल के ऊपर की पंखुडिया उजली और अंदर की ओर मुड़ी होती है। इसकी छोटी - छोटी चपटी टोंडिया या फलियां 2 से 3 के गुच्छों में रहती है। प्रत्येक कलियों में 2 से 3 बीज होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का सम्पूर्ण पुष्पित पौधा उपयोग किया जाता है। इसका संकलन मार्च के मध्य में या फसल होने के पहले पुष्पण काल में किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Protin, Carbohydrate, Faits, Vitamin- A,C, और D, Tricetin, Luteolin, Diglycosyldelphinidin, Pronthocyonidins पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ कब्जियत और आतो की सभी प्रकार की विकृति को दूर करने वाली तथा किसी भी तरह की ग्रंथि सूजन को दूर करने वाली, ब्रोंकाइटिस और नेत्र रोग में लाभकारी है। इसके रसायन ट्यूमर और चर्म रोग नाशक के साथ इसकी पत्तियाँ त्रिदोष नाशक (कफ, पित्त, रक्त) होती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में मसूर, बंगाली भाषा में मसूरी कलाएं, गुजराती भाषा में मसूर, संस्कृत में मसूर, मसूरक, मसूरा,मसूरिका, कल्याण बीज, पंजाबी भाषा में चंचिंग, भानहरी, मसूर, मोहि, मोहरी, तमिल भाषा में मिस्सूर, और अंग्रेजी भाषा में लेन्टाइल कहते है।
Pic credit - Google/www.grainews.ca |
वंश - यह पौधा Leguminosae कुल का खाद्य (Eddible) पौधा है इस कुल में इसकी 10 प्रजातियाँ पाई जाती है।
निवास - यह पौधा दक्षिणी और पश्चिमी यूरोप तथा मध्य एशिया का मूल निवासी है। भारत के मध्य और पूर्वी राज्यों में दाल के लिए मुख्य आहार के रूप में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती भारत के साथ -साथ फ्रांस में भी की जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक दलहनी फसल है, जिसकी बोवाई नवम्बर में और कटाई मार्च-अप्रैल में होती है। पौधे की अधिकतम ऊंचाई 1 से 1.5 फिट तक होती है। इसका तना क्षीण, कोडीय (Angular) होता है तना बहुशाखीय होता है। शाखाओं पर पत्तियाँ एकान्तर रूप में पत्रवृन्त विहीन (Sessile) छह से सात की संख्या में लगती है। पत्तियाँ छोटी आकार लम्बोत्तरी अंडाकार होती है। इसकी जड़े सीधी और छोटी होती है। मुख्य डंठल या तना लरबरा लत्तर जैसा होता है। अधिक लम्बे पौधे जमीन पर गिरे रहते है इसके फल दो से तीन के समूह या गुच्छो में लगते है। फुलो के निचे वाली पंखुड़ियों का रंग नीला, हृदयाकार (Corodate) और थोड़ा-थोड़ा जीभीकाकार (Langulate) होता है। फूल के ऊपर की पंखुडिया उजली और अंदर की ओर मुड़ी होती है। इसकी छोटी - छोटी चपटी टोंडिया या फलियां 2 से 3 के गुच्छों में रहती है। प्रत्येक कलियों में 2 से 3 बीज होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे का सम्पूर्ण पुष्पित पौधा उपयोग किया जाता है। इसका संकलन मार्च के मध्य में या फसल होने के पहले पुष्पण काल में किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Protin, Carbohydrate, Faits, Vitamin- A,C, और D, Tricetin, Luteolin, Diglycosyldelphinidin, Pronthocyonidins पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ कब्जियत और आतो की सभी प्रकार की विकृति को दूर करने वाली तथा किसी भी तरह की ग्रंथि सूजन को दूर करने वाली, ब्रोंकाइटिस और नेत्र रोग में लाभकारी है। इसके रसायन ट्यूमर और चर्म रोग नाशक के साथ इसकी पत्तियाँ त्रिदोष नाशक (कफ, पित्त, रक्त) होती है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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