पौधे का बैज्ञानिक नाम - इस पौधा का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - Carduns Benedictus Linnious है।
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विभिन्न भाषाओ में इस वनस्पति का प्रचलित नाम - इसको हिंदी भाषा में बादवर्द, पंजाबी में बदवर्द, और कश्मीर में गुलेबददर्द, कहा जाता है
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वंश - वनौषधि चंद्रोदय, भारत की सम्पदा भाग, दी मैकडोनाल्ड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ मेडिसिनल प्लांट्स, और ए डिक्सनरी ऑफ़ प्लांट्स यूज्ड वाई मैन, पर इसको Compositae परिवार का सदस्य बताया गया है। परन्तु वर्तमान दशक 1991 में भारत सरकार नै दिल्ली (प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय ) द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ Compedium of Indian Medicinal Plants Vol,1एवं 2 में इस पौधे को Asteraceae वंश का सदस्य बताया गया है। इसी ग्रन्थ में इस पौधे का नाम Centaurea calcittrapa linnious भी कहा जाता है। A Dictionary of plants used by Man के पृष्ठ 123 के अनुसार इस वंश में इसकी लगभग 100 जातियों का पाए जाने का उल्लेख है।
निवास - यह वनस्पति सुखी भूमि का मूल निवासी है यह यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका, एशिया, साइवेरिया और इरान में पायी जाती है। यह एशिया के शीतोष्ण सभी देशो में पायी जाती है।
पौधा का वर्णन - यह एक वर्षीय कांटेदार वनस्पति है। इसका रंग उजला, तना बेलनाकार, मुसला जड़, वाला यह पौधा है। इसके परिपक्व तना और डंठल कोणीय और लाल रंग में होते है। इसकी शाखाये शीर्ष की ऒर निकलती है इसकी पत्तिया चर्मिली और कंगूरेदार होती है पत्तियों का किनारा दंतुर और काटो से भरा होता है। इसके सम्पूर्ण पौधा पर रुवा होता है। तना और शाखाओ पर पत्तिया वृन्त विहीन होती है और अधिक संख्या में होती है इसके नलिकाकार फूलो का रंग पीला होता है। फूलो के निचे आधार पर लाल रंग के शाखेदार काटे होते है।
औषधीय कार्य के लिए पौधा का उपयोगित भाग - औषधीय कार्य के लिए इस पौधे का जड़, तना, पत्ती, फूल और फल का उपयोग किया जाता है। वनस्पति का संग्रह जून और जुलाई में किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - इस पौधे से Bitter Ethereal Compounds, Volatil oil, Tannin, Potasium salts, Enzymes, Resin, Mucilage और इसकी पत्तियों, फूलो, और हरी शाखाओ में Polyphenols, Sterols, Amino acid, Triterpens, Lipid, Carbohydrate, पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुण, धर्म और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाये - इस पौधे से प्राप्त रसायन सभी प्रकार के श्राव दोष जैसे रुका हुवा पेशाब और मासिक श्राव इसके अनुपान से आरम्भ हो जाता है। पीलिया (Jaundice)और जलोदर (Dropsy) में यह बहुत ही कारगर साबित होती है। कफ के साथ पुराने ज्वर को आरोग्य करती है। आंत और अमाशय की क्रिया बढ़ाने वाले (Stomachic and Eupeptic), पित्त रिसाब तथा प्रवाह को तेज करने वाले तथा धनुर्वात (Tatnus), आमाशय, आंत और यकृत की कमजोरी को दूर करके उनके कार्यो को सुधारने वाला होता है।
इसकी अधिक मात्रा मस्तिष्क और फेफड़ो को हानि पहुँचाती है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति का Infusion, Tincture, Distilled Water, Fluid Extract, आदि कई रूपों में व्यवहार किया जाता है।
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