पौधे का बैज्ञानिक नाम - इस पौधा का वैज्ञानिक नाम Artmisia Cina Berg. है। इसको आंग्ल भाषा में Levant worm seed भी कहा जाता है तथा अन्य भाषा में हिंदी में किरमाला, किरमानी अजवायन, छुहारी अजवायन, छुहारी अजमोद, मराठी में किरमानी ओवा, अरबी में अफसंन्तीन लवई, सरीफन, सरीकन, गुजराती में छुहारी अजमोदा, उर्दू में दरमनाह कहा जाता है।
वंश - इस पौधे को, भारत की सम्पदा भाग एक पृष्ठ 83 व् 85,वनौषधीय चन्द्रोदय, भाग दो पृष्ठ 137, दी मैकडोनाल्ड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ मेडिसिनल प्लांट्स पृष्ठ 41,42, 43, और 44 ए डिक्सनरी ऑफ़ प्लांट्स यूज्ड वाई मैन, पृष्ठ 60, 61,62, पर इसको Compositeae परिवार का सदस्य बताया गया है। परन्तु वर्तमान दशक 1991 में भारत सरकार नै दिल्ली (प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय ) द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ Compedium of Indian Medicinal Plants के खण्ड एक पृष्ठ 46 तथा खंड दो पृष्ठ 72 पर इस पौधे को एस्टोरैंसी (Asteraceae) वंश का सदस्य बताया गया है।
निवासी - यह रूस और तुर्किस्तान का मूल निवासी है यह रूस के पूर्वी छेत्रो में दूर दूर तक पाया जाता है भारत में यह पश्चिमी हिमालय में कश्मीर से कुमाऊ तक 2100 से 2700 मीटर की उचाई पर पाया जाता है यह पूर्वी गोलार्द्ध के उत्तरी भाग में प्रायः सभी क्षेत्रों में पाया जाता है।
पौधा का वर्णन - यह मध्य एशिया में उन अर्द्ध मरुभूमि क्षेत्रों में पाया जाता है। जहा गर्मियों में तापमान अधिक और सर्दियों में तापमान बहुत कम हो जाता है। इसकी खेती के लिए अर्द्ध शुष्क जलवायु और खरी बलुई भूमि सर्वोत्तम है। पौधे बीज या कलम से तैयार किये जाते है। यह सुगन्धित पौधा लघु झाड़ियों के रूप में फैलता है। इसकी पत्तिया छोटी और बहुभाजित होती है इसके फूलो की मंजरिया मुख्य तना और शाखाओ पर बहुतायत रूप में रहती है।
औषधीय कार्य के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्य के लिए इस पौधे का अप्रस्फटित शाखाग्र पुष्प मंजरिया व्यवहार की जाती है इसका संकलन मध्य अगस्त और मध्य सितंबर माह के बिच में किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से सैन्टोनिन, सैन्टोनिन अम्ल, कैम्फर, Ciniol और Essencial oil पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुड़, धर्म और शारीरिक क्रियाये - इस पौधे से प्राप्त रसायन से अग्निवर्धक (Eupeptic or stimulate Appetite) इसकी उचित मात्रा से भूख और पाचन क्रिया सुधर कर अच्छी हो जाती है। इसके रसायन कामोद्दीपक (Prostatsgland Stimulant) प्रभाव रखते है। इसके प्रभाव से नपुंसकता दूर होती है। यह कृमि नाशक गुण रखते है और इसके रसायन ऑव (Dysentry) को ये आरोग्य करते है
इसकी अल्प मात्रा 1 से 3 ग्रेन में व्यवहार किया जाता है इसकी अधिक मात्रा लेने से दृष्टि या कन्जकटाइवा पीली और कभी कभी जामुनी रंग की हो जाती है। इसकी अधिक मात्रा के अनुपात से सिर दर्द, मिचली और वमन और आक्षेप भी हो सकती है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय के लिए इस पौधे का Tincture,काढ़ा के रूप में उपयोग किया जाता है।
Pic credit - Google/https://urologia.msk.ru |
वंश - इस पौधे को, भारत की सम्पदा भाग एक पृष्ठ 83 व् 85,वनौषधीय चन्द्रोदय, भाग दो पृष्ठ 137, दी मैकडोनाल्ड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ मेडिसिनल प्लांट्स पृष्ठ 41,42, 43, और 44 ए डिक्सनरी ऑफ़ प्लांट्स यूज्ड वाई मैन, पृष्ठ 60, 61,62, पर इसको Compositeae परिवार का सदस्य बताया गया है। परन्तु वर्तमान दशक 1991 में भारत सरकार नै दिल्ली (प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय ) द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ Compedium of Indian Medicinal Plants के खण्ड एक पृष्ठ 46 तथा खंड दो पृष्ठ 72 पर इस पौधे को एस्टोरैंसी (Asteraceae) वंश का सदस्य बताया गया है।
Pic credit - Google/https://en.wikipedia.org |
निवासी - यह रूस और तुर्किस्तान का मूल निवासी है यह रूस के पूर्वी छेत्रो में दूर दूर तक पाया जाता है भारत में यह पश्चिमी हिमालय में कश्मीर से कुमाऊ तक 2100 से 2700 मीटर की उचाई पर पाया जाता है यह पूर्वी गोलार्द्ध के उत्तरी भाग में प्रायः सभी क्षेत्रों में पाया जाता है।
पौधा का वर्णन - यह मध्य एशिया में उन अर्द्ध मरुभूमि क्षेत्रों में पाया जाता है। जहा गर्मियों में तापमान अधिक और सर्दियों में तापमान बहुत कम हो जाता है। इसकी खेती के लिए अर्द्ध शुष्क जलवायु और खरी बलुई भूमि सर्वोत्तम है। पौधे बीज या कलम से तैयार किये जाते है। यह सुगन्धित पौधा लघु झाड़ियों के रूप में फैलता है। इसकी पत्तिया छोटी और बहुभाजित होती है इसके फूलो की मंजरिया मुख्य तना और शाखाओ पर बहुतायत रूप में रहती है।
औषधीय कार्य के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्य के लिए इस पौधे का अप्रस्फटित शाखाग्र पुष्प मंजरिया व्यवहार की जाती है इसका संकलन मध्य अगस्त और मध्य सितंबर माह के बिच में किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से सैन्टोनिन, सैन्टोनिन अम्ल, कैम्फर, Ciniol और Essencial oil पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुड़, धर्म और शारीरिक क्रियाये - इस पौधे से प्राप्त रसायन से अग्निवर्धक (Eupeptic or stimulate Appetite) इसकी उचित मात्रा से भूख और पाचन क्रिया सुधर कर अच्छी हो जाती है। इसके रसायन कामोद्दीपक (Prostatsgland Stimulant) प्रभाव रखते है। इसके प्रभाव से नपुंसकता दूर होती है। यह कृमि नाशक गुण रखते है और इसके रसायन ऑव (Dysentry) को ये आरोग्य करते है
इसकी अल्प मात्रा 1 से 3 ग्रेन में व्यवहार किया जाता है इसकी अधिक मात्रा लेने से दृष्टि या कन्जकटाइवा पीली और कभी कभी जामुनी रंग की हो जाती है। इसकी अधिक मात्रा के अनुपात से सिर दर्द, मिचली और वमन और आक्षेप भी हो सकती है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय के लिए इस पौधे का Tincture,काढ़ा के रूप में उपयोग किया जाता है।
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