पौधे का बैज्ञानिक नाम - Aloe Ferrox Linnious की पत्तियों से से प्राप्त मुसब्बर (Aloe) को Aloe Capensis कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Aloe Capensis Linnious है। इसका वर्णन बहुत ही कम ग्रंथो में है इसकी जगह पर इसी की ही प्रजाति Aloe Vera जिसका वर्णन सभी ग्रंथो में पाया जाता है, का किया जाता है
विभिन्न भाषाओ में इसका प्रचलित नाम - भारत में इसकी प्रजाति को घीकुवांर,घीग्वार, घृतकुमारी, बंगला में कोमारी, घृतकीमारी और मराठी में कोरफल, कोरकड़, गुजराती में कडवीकुवार, कुवार, तमिल में अंग निकटलई, कोडियन चिरुकंतारे, चिरुकट्टाली, तेलगु में चिकलबंदी, चिन्न, कडावांडा, कन्नड़ में लोलीसरा, मलयालम में कुमारी, अरबी में मुसब्वर, सब्वर, उर्दू में घीकुआर कहा जाता है।
वंश - इसका मूल निवास पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका है यह खारी, रेतीली भूमि तथा नदी तट पर प्रायः पुरे भारत वर्ष में पाया।
वनस्पति का वर्णन - यह एक मरुदभिदी वनस्पति है इसकी दलदार और सशक्त त्वचावान पत्तिया आमतौर पर किनारे पर काँटेदार और सघन गुच्छों में संयोजित रहती है। इसकी पत्तियों की लम्बाई दो फ़ीट और चौड़ाई चार इंच तक होती है यह करीब 20 प्रजातियों में पाई जाती है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधा का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इसकी पत्तियों का व्यवहार किया जाता है इसकी पत्तियों का संग्रहण किसी भी ऋतु में किया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस वनस्पति की पत्तियों से प्राप्त टिंक्चर या एलोय में ग्लूकोसाइडो का एक मिश्रण पाया जाता है। जिसे एलोइन कहा जाता है। इसके आलावा इसमें Aloe-emodin, Resin, Malic Acid, Citric acid, Tartaric acid, और कुछ Enzymes भी पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुड़, धर्म और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाये - इसके रसायनों का स्वाद मीठा, कडुवा, स्वभाव शीतल, प्रभाव विरेचक ( Aperient Laxative ), रेचक, धातु परिवर्तनमज्जा वर्धक, क्षुधा वर्धक, कामोद्दीपक, विष निवारक, पित्त प्रवाहक,आंतो की क्रिया वर्धक होता है।
कब्ज और यकृत के रोग तिल्ली ( Spleen ) के रोग,चर्म रोग,कुष्ट रोग, अर्बुद ( Tumor ), नेत्र रोग, में प्रयोग किया जाता है। कब्जियत के ऊपर तो ये रामबाण औषधीय है इसकी क्रिया लिवर पर बहुत ही बढ़िया काम करती है। इस कारण यह बवासीर से लेकर पुरे पाचन नाली पर इसकी क्रिया होती है। यह मासिक धर्म की अनियमितता में भी बहुत ही कारगर साबित होती है।
इसके व्यवहार के प्रचलित स्वरुप - इस पौधा का व्यवहार इन्फ्यूजन, चूर्ण (प्रौढ़ पत्तियों को तावे या कड़ाही में जला कर इसकी राख ), जेल आदि कई रूपों में किया जाता है।
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विभिन्न भाषाओ में इसका प्रचलित नाम - भारत में इसकी प्रजाति को घीकुवांर,घीग्वार, घृतकुमारी, बंगला में कोमारी, घृतकीमारी और मराठी में कोरफल, कोरकड़, गुजराती में कडवीकुवार, कुवार, तमिल में अंग निकटलई, कोडियन चिरुकंतारे, चिरुकट्टाली, तेलगु में चिकलबंदी, चिन्न, कडावांडा, कन्नड़ में लोलीसरा, मलयालम में कुमारी, अरबी में मुसब्वर, सब्वर, उर्दू में घीकुआर कहा जाता है।
वंश - इसका मूल निवास पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका है यह खारी, रेतीली भूमि तथा नदी तट पर प्रायः पुरे भारत वर्ष में पाया।
वनस्पति का वर्णन - यह एक मरुदभिदी वनस्पति है इसकी दलदार और सशक्त त्वचावान पत्तिया आमतौर पर किनारे पर काँटेदार और सघन गुच्छों में संयोजित रहती है। इसकी पत्तियों की लम्बाई दो फ़ीट और चौड़ाई चार इंच तक होती है यह करीब 20 प्रजातियों में पाई जाती है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधा का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इसकी पत्तियों का व्यवहार किया जाता है इसकी पत्तियों का संग्रहण किसी भी ऋतु में किया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस वनस्पति की पत्तियों से प्राप्त टिंक्चर या एलोय में ग्लूकोसाइडो का एक मिश्रण पाया जाता है। जिसे एलोइन कहा जाता है। इसके आलावा इसमें Aloe-emodin, Resin, Malic Acid, Citric acid, Tartaric acid, और कुछ Enzymes भी पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुड़, धर्म और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाये - इसके रसायनों का स्वाद मीठा, कडुवा, स्वभाव शीतल, प्रभाव विरेचक ( Aperient Laxative ), रेचक, धातु परिवर्तनमज्जा वर्धक, क्षुधा वर्धक, कामोद्दीपक, विष निवारक, पित्त प्रवाहक,आंतो की क्रिया वर्धक होता है।
कब्ज और यकृत के रोग तिल्ली ( Spleen ) के रोग,चर्म रोग,कुष्ट रोग, अर्बुद ( Tumor ), नेत्र रोग, में प्रयोग किया जाता है। कब्जियत के ऊपर तो ये रामबाण औषधीय है इसकी क्रिया लिवर पर बहुत ही बढ़िया काम करती है। इस कारण यह बवासीर से लेकर पुरे पाचन नाली पर इसकी क्रिया होती है। यह मासिक धर्म की अनियमितता में भी बहुत ही कारगर साबित होती है।
इसके व्यवहार के प्रचलित स्वरुप - इस पौधा का व्यवहार इन्फ्यूजन, चूर्ण (प्रौढ़ पत्तियों को तावे या कड़ाही में जला कर इसकी राख ), जेल आदि कई रूपों में किया जाता है।
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