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पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Malva Sylvestris Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में गुल खैर, कुंझी, बम्बई में खुबासी, कन्नड़ में sannabindigegida, पटना में खतमी, और उर्दू में खुंबाजी, दक्षिण भारत में विलायती, कगोई, और अंग्रेजी भाषा में "दी मैकडोनाल्ड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ मेडिसिन्स प्लॉट" के पृष्ठ 189 पर इसको common mallow कहते है। जबकि ए डिक्सनरी ऑफ़ प्लांट्स यूज्ड बाई मैन" के पृष्ठ 375 पर common mallow का वैज्ञानिक नाम malva rotundifolia linnious बताते है। पर इन दोनों वनस्पतियो के गुण, धर्म और शारीरिक क्रियाये एक सामान बताई गई है।
वंश - यह पौधा माल्वैएसी (malvaceae) कुल का वनस्पति है। इस कुल में इसकी कुल 40 प्रजातियों का उल्लेख मिलता है।
निवास - यह वनस्पति उत्तरी भूमध्य क्षेत्र, यूरोप और एशिया का मूल निवासी है। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया में भी यह वनस्पति पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। इसकी कुछ प्रजातियां चीन में भी पायी जाती है। भारत में यह हिमालय के पश्चिम उष्ण क्षेत्रों में पंजाब से कुमाऊ तक 2000 से 8000 फिट की उचाई में तथा बम्बई, मैसूर व मद्रास में पायी जाती है। बिहार के बाजार में यह खितमि नाम से उपलब्ध है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक बारहमासी (perennial) रोमिल शाकीय औषधीय वनस्पति है। इसके प्रकाण्ड सीधा होते है। इसकी मूसली जेड अपेक्षाकृत मुलायम (pulpy) होती है। इस वनस्पति की उचाई लगभग 18 से 40 इंच तक होती है। सवृन्त पत्तियों का किनारा दंतुर होता है। पत्तियों के वृन्त निचे की अपेक्षा ऊपर में छोटे होते है। फूलो का रंग लाल बैगनी से लेकर गहरे लाल रंग के होते है। कभी कभी किसी किसी पौधे में फूलो का रंग लाल मणि (grenet red) की तरह, और कभी कभी गुलाबी चमकीला होता है। इसके फूल पत्तियों के अक्ष पर छोटे घुच्छो के रूप में लगते है। इसके छोटे बाह्य दलपुंजों में 5 अदद अंखुड़िया और पुष्पदल पुंजों में 5 अदद पंखुडिया होती है। पंखुड़ियों का अंतिम किनारा दंतुर होता है। इसके सम्पुटिका नुमा फलो में गुर्दे के आकर के काले बीज होते है। इसके बीज या फल खूबाजी के नाम से और फूल गुलखैर के नाम से बाज़ारो में मिलते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति के वृन्त विहीन पत्तियो उपयोग किया जाता है। इसका संकलन बसंत ऋतु के आरम्भ में वनस्पति के पुष्पन काल में किया जाता है। इसके फूलो का क्वाथ या फाट (decoction) मुँह और गले के कष्टों में गरारा करने और मुँह धोने के लिए किया जाता है। स्थानीय लोग इसकी पत्तियों को चाय के स्थान पर व्यवहार करते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस वनस्पति की पत्तियों में (mucilage),टैनिन (tainnin), एंजाइम, एसेंसियल आयल, माल्वीन (malvine), माल्वीडीन, कोलिन, तथा इसके फूलो में mucins, hydrolysing से D. galactose, L.arabinose, L.rhamonse तथा D. galacturonic acid प्राप्त किये जाते है। इसकी पत्तियों से दो नए flavonol glycosides, gossypin-3 sulphate पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ त्वचा को स्निग्ध करने वाले (antiphlogestic), कफोत्सारक (expectorant), दस्तावर या विरेचक (laxative), मूत्रल (diuretic) आदि गुण, धर्म वाले होते है। इसके टिंक्चर का उपयोग सभी प्रकार के प्रादाहिक रोगो की चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियों से प्राप्त रासायनिक पदार्थो का व्यवहार खांसी, श्राव, स्वर नली का प्रदाह (larynxgitis), श्वास नली का प्रदाह (pharynxgitis), टॉन्सिलाइटिस (tonsilitis), पाचन नली का प्रदाह (entritis) आदि प्रदाहिक कष्टों में किया जाता है। इसके रसायन ऑतो के आक्षेप (spasm) और मरोड़ (cramp) में लाभकारी पाया गया है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस पौधे की शाखाओं का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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