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वनस्पति का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - Genista Scoparius Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में इसका प्रचलित नाम - इस वनस्पति का सामान्य नाम Spanish Broom या Weaver's Broom है।
वंश - यह वनस्पति Leguminosac कुल का सदस्य है। इस कुल में इसकी 75 जातीया पाई जाती है।
निवास - यह भूमध्ययी क्षेत्रों का मूल निवासी है। यह पौधा यूरोपीय देशो के साथ - साथ साइबेरिया में भी पाया जाता है। यह वनस्पति प्रायः समुद्री किनारा, ढालुआँ भूमि (जहा पानी का निकास बेहतर हो), रेलवे इम्बैकमेंन्ट और कंकड़ीली क्षेत्रों में भी पायी जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - इस वनस्पति का सामान्य नाम से स्पष्ट है की यह एक बहु शाखीय वनस्पति है। जिसकी टहनिया झाड़ूदार होती है। इसका जातीय नाम (Generic Name) ग्रीक भाषा के Sporton शब्द से आया है। जिसका शाब्दिक अर्थ रस्सी का बल, ऐठन या भाँज (strand) होता है। रस्से का ऐठन या बल शब्द बुनाई की रेखा की ओर संकेत करता है। वास्तव में इस वनस्पति की शाखाओ या तना से बुनाई के लिए रेशाओं की प्राप्ति होती है। यह एक रीढ़दार (spiny) और नोकदार मुसला जड़ वाली वनस्पति है। यह बहुशाखित झाड़ीनुमा, सीधा खड़ा रहने वाला वनस्पति है। इसकी उचाई लगभग 10 फ़ीट या 3 मीटर से भी अधिक होती है। इसकी शाखाएं या टहनियाँ बेलनाकार, सीधी, और स्पांजी ऊतक वाली (pithy) होती है। टहनियों पर इसकी पत्तिया एकान्तर रूप में लगती है। ये रेखांकित भालाकार (caducous - वैसी पत्तिया जो पूर्ण विकसित होने के पूर्व ही गिर जाती है। जैसे पीपल, आम आदि की कुछ पत्तिया) अनुपर्ण होती है। इसके फूल घने होते है। और प्रायः गोल गुच्छा बनाते है। इसके फूलो के बाह्य दलपुंज में 5 अदद दंतुर अखुडिया (sepals) होती है। फूल की दो अदद पंखुडिया (petals) एक नाव की तरह की आकृति (carina) बनाती है। इसके फलो का रंग काला होता है। फलों के चपटे बीजकोष में गहरे रंग के अंडाकार (oval) बीज होते है।
वनस्पति का उपयोगी अंग - औषधीय कार्यो के लिए वनस्पति के शाखाग्र व्यवहार किये जाते है। इसका संकलन ग्रीष्म ऋतु में किया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - इस वनस्पति के पुष्पित शाखाग्र में साइटीसीन (cytisine),रंग द्रव्य ( colouring substances), इत्र (issence), एन्जाइम (enzyme), टैनिन (tainnin), रैजिन आदि रसायन पाए जाते है।
रासायनिक पदार्थो के गुण, धर्म और शारीरिक क्रियाएं - इस वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ शरीर पर मूत्रल (diuretic) और विरेचक (purgativ) क्रिया प्रकट करते है। शरीर पर इसकी मूत्रल क्रिया के कारण ये बॉडी फ्ल्यूड (lymph & blood) के आयतन, उनके घटको का अनुपात, तापमान, और पी.एच.मान (अम्लीय और क्षारीय अनुपात) को स्टीडी स्टेट में रखते है। ये ह्रदय की क्रिया को नियमित रखते है। जलोदर को आरोग्य करते है। पुराने घावों और मलिग्नेंट अल्सर अर्थात कैंसर को आरोग्य करते है। तथाकथित पत्रिका से साभार अंकित है।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित अंग - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति के पुष्पित शाखाग्र का इन्फ्यूजन, टिंक्चर, क्वाथ, आदि कई रूपों में व्यवहार किया जाता है। इस वनस्पति का रेशा औषधीय कार्यो के लिए व्यवहार किये जाते है।
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