Hyoscyamus Niger (Hen Bane) – विषैला औषधीय पौधा और इसके गुण

पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Hyoscyamus Niger Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में खुरसानी अजवायन, संस्कृत में पारसीक, यमानी, बुरुष्का, मदकारिणी, गुजराती में खुरसानी अजमो, बम्बई में खोरसानी ओबा, तमील में कुरसानी योमम, बंगला में खरोसानी अजोवायन, तेलगु में खुरसानी वामम, और अंग्रेजी भाषा में Hen Bane कहते है। Hen का शाब्दिक अर्थ मुर्गी और Bane का शाब्दिक अर्थ बिष या क्षय का कारण होता है। अर्थात Hen Bane का शाब्दिक अर्थ मुर्गी बिष होता है। वास्तव में इस वनस्पति के पंचांग विषैला प्रभाव रखते है।
वंश - यह वनस्पति सोलैनैएसी (solanaceae) कुल का सदस्य है। इस कुल में इसकी लगभग 200 प्रजातियां पाए जाने का उल्लेख मिलता है।
निवास - यह औषधीय किन्तु विषैली वनस्पति यद्यपि की सामान्य नहीं है। फिर भी सम्पूर्ण यूरोप, उत्तरी अफ्रीका के शहर क्षेत्र से लेकर दक्षिण पश्चिम और मध्य अफ्रीका में पायी जाती है। भारत में इसके क्षुप (shrub) हिमालय में कश्मीर से गढ़वाल तक 5000 फ़ीट से लेकर 11000 फ़ीट की उचाई तक पाई जाती है। इसके क्षुप प्रायः बेकार परती भूभाग, भवनों के पुराने खंडहरों, पठडीली जमीन और पहाड़ी क्षेत्रों में उगते है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक रोमील (pilose) औषधीय वनस्पति है। इसकी जड़े वर्तुलाकार (spindle shaped root) होती है। इसके प्रकाण्ड सीधा और पुष्ट, साधारण या बहुशाखित होते है। इसकी उचाई एक मीटर से भी अधिक होती है। इसकी पत्तिया कोमल, रोमील, अंडाकार, एकान्तर, कंगूरेदार और वृन्तविहीन होती है। इसके फूल लम्बी डंठल के अंतस्थ पर पीले रंग के लगते है। फूल की पंखुड़ियों पर गहरे बैगनी रंग की शिराएँ (veins) स्पष्ट उभरी रहती है। फूलो की पंखुडिया पंचखंडी (fives lobes) होती है। जो आधार पर वे एक साथ जुडी रहती है। इसके पुष्प दल इन्फन्डीबुली फॉर्म (infundibuli form) में रहते है। फूलो में पारागकोष का रंग गहरा बैगनी होता है। इसके फल सम्पुटिकावत (capsule like) होते है। जिसमे छोटे छोटे बीज गुर्दे की आकृति वाले होते है। इसके पौधे से हमेशा एक प्रकार का अप्रिय गंध (unpleasent smell) निकलता रहता है। इसके बीज भी विषैला क्रिया वाले होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति का सर्वांग अर्थात पंचांग व्यवहार किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Hyoscyamine, scopolamine, atropine, नमक एल्केलायड, एंजाइम्स आदि पाए जाते है। इसके आलावा इसमें तेल,स्टार्च स्टीयरिन (stearin) लवण (salt), गोंद आदि पाए जाते है। इसमें glycosides, hyoscypinenin, coline, mucilage, albumin आदि भी पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ वेदना हारी (analgesic) चक्कर जनक (narcotic) आखों की पुतलियों का प्रसारक (mydriatic) गुण, धर्म, क्रिया वाले होते है। इसके रसायनो की क्रिया तंत्रिका तंत्र पर अवसादक होती है। इसके रसायनो की क्रिया दमा और कुकुर खांसी (whooping cough)की चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसमें निद्रल (hypnotic) अर्थात इसके अल्प मात्रा के अनुपान से नीद आती है। नीद के माध्यम से वेदना का शमन करने के लिए इसकी तुलना में दूसरी निद्रल और अवसादक औषधीय अफीम है। लेकिन अफीम सभी रोगियों के लिए मुफीद नहीं है। इसके रसायनो की क्रियाओ की बराबरी करने वाली दूसरी औषधीय पौधा धतूरा है। लेकिन इसके रसायनो के अनुपान से रोगी को भ्रम और मद (नशा) उत्पन्न होता है। (बनौ. चंद्रो. भाग-1, पृष्ठ 19 )
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति के सम्पूर्ण भागो का चूर्ण का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), तैलीय सॉल्यूशन आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
वंश - यह वनस्पति सोलैनैएसी (solanaceae) कुल का सदस्य है। इस कुल में इसकी लगभग 200 प्रजातियां पाए जाने का उल्लेख मिलता है।
निवास - यह औषधीय किन्तु विषैली वनस्पति यद्यपि की सामान्य नहीं है। फिर भी सम्पूर्ण यूरोप, उत्तरी अफ्रीका के शहर क्षेत्र से लेकर दक्षिण पश्चिम और मध्य अफ्रीका में पायी जाती है। भारत में इसके क्षुप (shrub) हिमालय में कश्मीर से गढ़वाल तक 5000 फ़ीट से लेकर 11000 फ़ीट की उचाई तक पाई जाती है। इसके क्षुप प्रायः बेकार परती भूभाग, भवनों के पुराने खंडहरों, पठडीली जमीन और पहाड़ी क्षेत्रों में उगते है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक रोमील (pilose) औषधीय वनस्पति है। इसकी जड़े वर्तुलाकार (spindle shaped root) होती है। इसके प्रकाण्ड सीधा और पुष्ट, साधारण या बहुशाखित होते है। इसकी उचाई एक मीटर से भी अधिक होती है। इसकी पत्तिया कोमल, रोमील, अंडाकार, एकान्तर, कंगूरेदार और वृन्तविहीन होती है। इसके फूल लम्बी डंठल के अंतस्थ पर पीले रंग के लगते है। फूल की पंखुड़ियों पर गहरे बैगनी रंग की शिराएँ (veins) स्पष्ट उभरी रहती है। फूलो की पंखुडिया पंचखंडी (fives lobes) होती है। जो आधार पर वे एक साथ जुडी रहती है। इसके पुष्प दल इन्फन्डीबुली फॉर्म (infundibuli form) में रहते है। फूलो में पारागकोष का रंग गहरा बैगनी होता है। इसके फल सम्पुटिकावत (capsule like) होते है। जिसमे छोटे छोटे बीज गुर्दे की आकृति वाले होते है। इसके पौधे से हमेशा एक प्रकार का अप्रिय गंध (unpleasent smell) निकलता रहता है। इसके बीज भी विषैला क्रिया वाले होते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति का सर्वांग अर्थात पंचांग व्यवहार किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ Hyoscyamine, scopolamine, atropine, नमक एल्केलायड, एंजाइम्स आदि पाए जाते है। इसके आलावा इसमें तेल,स्टार्च स्टीयरिन (stearin) लवण (salt), गोंद आदि पाए जाते है। इसमें glycosides, hyoscypinenin, coline, mucilage, albumin आदि भी पाए जाते है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - इस पौधे से प्राप्त रसायनिक पदार्थ वेदना हारी (analgesic) चक्कर जनक (narcotic) आखों की पुतलियों का प्रसारक (mydriatic) गुण, धर्म, क्रिया वाले होते है। इसके रसायनो की क्रिया तंत्रिका तंत्र पर अवसादक होती है। इसके रसायनो की क्रिया दमा और कुकुर खांसी (whooping cough)की चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसमें निद्रल (hypnotic) अर्थात इसके अल्प मात्रा के अनुपान से नीद आती है। नीद के माध्यम से वेदना का शमन करने के लिए इसकी तुलना में दूसरी निद्रल और अवसादक औषधीय अफीम है। लेकिन अफीम सभी रोगियों के लिए मुफीद नहीं है। इसके रसायनो की क्रियाओ की बराबरी करने वाली दूसरी औषधीय पौधा धतूरा है। लेकिन इसके रसायनो के अनुपान से रोगी को भ्रम और मद (नशा) उत्पन्न होता है। (बनौ. चंद्रो. भाग-1, पृष्ठ 19 )
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति के सम्पूर्ण भागो का चूर्ण का क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), सीरप (Syrup), तैलीय सॉल्यूशन आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।