पौधे का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Evonymus Europaeus Linnious है।
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में केसरी, पापर, शिमला में चोपरा मेरमहाल (अर्थात शिमला में इसके वृक्ष उपलब्ध है ), नेपाली में नेवार, कसूरी,और अंग्रेजी भाषा में Spindle tree (इसका शाब्दिक अर्थ "पतला वृक्ष" या तर्कुलाकार वृक्ष) कहते है।
वंश - यह Celastraceae कुल का वृक्ष है। इस वंश में इसकी लगभग 176 जातियां और अनेको उपजातियाँ पाई जाती है।
निवास - यह एशिया के समशीतोष्ण प्रदेशो, मलयाद्रीप समूहों, यूरोपीय देशों, साइबेरिया तथा अमेरिका में पाई जाती है। इसकी अघिकांश जातियाँ चीन और जापान में पाई जाती है। भारत में यह वनस्पति पश्चिम में सतलज, हिमालय से लेकर नेपाल तक 6500 फिट से लगायत 10000 फिट की उचाई तक पर्याप्त पाई जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक पतझड़ी छोटे कद का वृक्ष है। इसकी उचाई लगभग 20 फिट तक होती है। इसकी छाल चिकनी, धूसर रंग (grey colour) की होती है। शाखाओ पर इसकी पत्तिया आमने सामने लगती है। पत्तियों का आकर अंडा की तरह गोल और नुकीली होती है। इसके फूल सहपत्रियो के ऊपर सहायक टहनियों पर मई जून में खिलते है। इसके फूल द्रिलिंगी या एकलिंगी बिलकुल पृथक पृथक खिलते है। फूल के पंखुड़ियों का रंग हरापन लिए हुए होते है। इसके गोल फल स्पष्ट रूप से चार खंडो में विभक्त होते है। फल सम्पुटिका नुमा मांसल होते है। इसके परिपक्व फलो का रंग गुलाबी हो जाते है। फलो के पकने के बाद चटकने (Splitting open) से सम्पुटिका खुल जाती है। और उनमे से मांसल बीज,बाहर आ जाते है। गुलाबी रंगो से परिपूर्ण फलो के गुच्छे शरद ऋतू में वृक्ष को मनमोहक आभा प्रदान करते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस वृक्ष की छाल और बीज उपयोग किया जाता है। औषधीय के लिए छालो का संकलन प्रौढ़ वृक्षों से सभी ऋतुओ में सुविधानुसार किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - सर्वप्रथम प्लाइनी नामक वनस्पति शास्त्र ने अपने ग्रन्थ में इस वृक्ष का औषधीय उपयोग के रूप में वर्णन किया है। इसकी छाल में Eunoymol, Atropurol, Euonysterol, Monoeuomysterol, Bitter principel, Pigments, Tannin, Alkaloid, Enzymes, Vitamin C आदि पाए जाते है। उपरोक्त सभी रासायनिक पदार्थो के अतिरिक्त इसकी छालों और बीजो में विशेष प्रकार का तेल भी पाया जाता है यह तेल त्वचा के लिए अति ही स्निग्धकारी गुणों से युक्त होता है। इसके तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के उद्योगों में और साबुन बनाने के लिए किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - यह वनस्पति प्राचीन काल में औषधीय कार्यो के लिए व्यवहार की जाती थी। आधुनिक काल में इसकी छालों और बीजो से प्राप्त रसायन साबुन और सौंदर्य प्रसाधन के उद्योगों में उपयोग किए जाते है। यकृत की खराबी, जिनके कारण कब्जियत और अपच होती है में उपयोग किया जाता है। कब्जियत दूर होने की यंत्र रचना में ऑतो की आकुंचन गति का पर्याप्त होना, ऑतो की दीवारों में स्थित ग्रंथियों द्वारा पर्याप्त रस का रिसाव किया जाना,मलाशय और मलद्वार की पेशियों का आकुंचन में कमी का पर्याप्त प्रसार होना शामिल है। इसके रसायन पुराने कब्जियत को दूर करते है। इसके रसायन अजीर्ण और यकृत के पित्त दोष की बीमारियों में अच्छा लाभकारी क्रिया करते है। यह स्कर्वी रोधी गुण भी रखता है। मुहासो, धब्बो तथा झुर्रियों को दूर करने के लिए इसके रसायन का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति की छाल और बीजो का लोशन, क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), Ointment, पाउडर, आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
Pic credit - Google/https://en.wikipedia.org |
विभिन्न भाषाओ में पौधे का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिन्दी भाषा में केसरी, पापर, शिमला में चोपरा मेरमहाल (अर्थात शिमला में इसके वृक्ष उपलब्ध है ), नेपाली में नेवार, कसूरी,और अंग्रेजी भाषा में Spindle tree (इसका शाब्दिक अर्थ "पतला वृक्ष" या तर्कुलाकार वृक्ष) कहते है।
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वंश - यह Celastraceae कुल का वृक्ष है। इस वंश में इसकी लगभग 176 जातियां और अनेको उपजातियाँ पाई जाती है।
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निवास - यह एशिया के समशीतोष्ण प्रदेशो, मलयाद्रीप समूहों, यूरोपीय देशों, साइबेरिया तथा अमेरिका में पाई जाती है। इसकी अघिकांश जातियाँ चीन और जापान में पाई जाती है। भारत में यह वनस्पति पश्चिम में सतलज, हिमालय से लेकर नेपाल तक 6500 फिट से लगायत 10000 फिट की उचाई तक पर्याप्त पाई जाती है।
वनस्पति विन्यास का वर्णन - यह एक पतझड़ी छोटे कद का वृक्ष है। इसकी उचाई लगभग 20 फिट तक होती है। इसकी छाल चिकनी, धूसर रंग (grey colour) की होती है। शाखाओ पर इसकी पत्तिया आमने सामने लगती है। पत्तियों का आकर अंडा की तरह गोल और नुकीली होती है। इसके फूल सहपत्रियो के ऊपर सहायक टहनियों पर मई जून में खिलते है। इसके फूल द्रिलिंगी या एकलिंगी बिलकुल पृथक पृथक खिलते है। फूल के पंखुड़ियों का रंग हरापन लिए हुए होते है। इसके गोल फल स्पष्ट रूप से चार खंडो में विभक्त होते है। फल सम्पुटिका नुमा मांसल होते है। इसके परिपक्व फलो का रंग गुलाबी हो जाते है। फलो के पकने के बाद चटकने (Splitting open) से सम्पुटिका खुल जाती है। और उनमे से मांसल बीज,बाहर आ जाते है। गुलाबी रंगो से परिपूर्ण फलो के गुच्छे शरद ऋतू में वृक्ष को मनमोहक आभा प्रदान करते है।
औषधीय कार्यो के लिए पौधे का उपयोगित भाग - औषधीय कार्यो के लिए इस वृक्ष की छाल और बीज उपयोग किया जाता है। औषधीय के लिए छालो का संकलन प्रौढ़ वृक्षों से सभी ऋतुओ में सुविधानुसार किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - सर्वप्रथम प्लाइनी नामक वनस्पति शास्त्र ने अपने ग्रन्थ में इस वृक्ष का औषधीय उपयोग के रूप में वर्णन किया है। इसकी छाल में Eunoymol, Atropurol, Euonysterol, Monoeuomysterol, Bitter principel, Pigments, Tannin, Alkaloid, Enzymes, Vitamin C आदि पाए जाते है। उपरोक्त सभी रासायनिक पदार्थो के अतिरिक्त इसकी छालों और बीजो में विशेष प्रकार का तेल भी पाया जाता है यह तेल त्वचा के लिए अति ही स्निग्धकारी गुणों से युक्त होता है। इसके तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के उद्योगों में और साबुन बनाने के लिए किया जाता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म एवं शारीरिक क्रियाएँ - यह वनस्पति प्राचीन काल में औषधीय कार्यो के लिए व्यवहार की जाती थी। आधुनिक काल में इसकी छालों और बीजो से प्राप्त रसायन साबुन और सौंदर्य प्रसाधन के उद्योगों में उपयोग किए जाते है। यकृत की खराबी, जिनके कारण कब्जियत और अपच होती है में उपयोग किया जाता है। कब्जियत दूर होने की यंत्र रचना में ऑतो की आकुंचन गति का पर्याप्त होना, ऑतो की दीवारों में स्थित ग्रंथियों द्वारा पर्याप्त रस का रिसाव किया जाना,मलाशय और मलद्वार की पेशियों का आकुंचन में कमी का पर्याप्त प्रसार होना शामिल है। इसके रसायन पुराने कब्जियत को दूर करते है। इसके रसायन अजीर्ण और यकृत के पित्त दोष की बीमारियों में अच्छा लाभकारी क्रिया करते है। यह स्कर्वी रोधी गुण भी रखता है। मुहासो, धब्बो तथा झुर्रियों को दूर करने के लिए इसके रसायन का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्यो के लिए इस वनस्पति की छाल और बीजो का लोशन, क्वाथ (Decoction), टिंक्चर (Tincture), तरल सत्व (Fluide-xtract), Ointment, पाउडर, आदि कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
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