वनस्पति का वैज्ञानिक या औषधीय नाम - Cinchona Succirubra है।
विभिन्न भाषाओ में वनस्पति का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिंदी में सिंकोना, कुनैन,संस्कृत में किंकिण, किण, रक्तत्वक,तेलगु में बारकी नमर,किंकिग, किना, होमियोपैथी में यह चाइना (China) के नाम से जाना जाता है।
वंश - यह वनस्पति रुबीऐसी (Rubiaceae) कुल का सदस्य है। इस वंश में इसकी 40 जातिया पायी जाती है।
निवास - यह वनस्पति दक्षिण अमेरिका का मूल निवासी है। यह 19वीं शदी के आरम्भ में भारत और जावा ले जाया गया था। लगभग 200 वर्षो तक इसके प्राप्ति के श्रोत मात्र जंगल ही थे। अब तक भारत में इसके प्राप्ति के स्रोत मात्र जंगल ही थे। अब भारत में महाबलेश्वर, नीलगिरी, कुर्ग के पहाड़ी क्षेत्र, ट्राबनकोर, देव कोलम, मैसूर टीनवेल्ली, पंजाब में कांगड़ा, बंगाल में दार्जलिंग, सिक्किम, भूटान इत्यादि जगहों पर इसकी खेती की जाती है।
वनस्पति का विन्यास वर्णन - यह एक सदाहरित बहुवर्षीय वृक्ष है। इसकी पत्तिया सवृन्त, अण्डाकार किनारा भालाकार होता है पत्रवृन्त के निचे की पत्तिया अंदर की ओर ग्रंथिल होती है। इसके फूल गुलाबी, पीला या उजले होते है। फूलो की घनी मंजरियाँ ऊपरी पत्तियों के अक्ष या अंतस्य पर लगती है। फूल के बाह्य दलपुंज में 5 अदद दाँतेदार परिदल होते है। पुष्पदल पुंज नलिकाकार होते है। जो ऊपर की तरफ पांच खंडो में विभक्त हो जाते है पंखुड़ियों (Petalls) का किनारा (Margine) रोमिल होता है। परागकोष (Anthers) रेखांकित रूप में मध्यनलि से सम्बंधित रहते है। इसके फल सम्पुटिकाकार (Like Capsule) होते है। जिनमे अनेक बीज होते है। इसके वृक्ष का प्रचलित नाम सिंकोना है। इसके अनेक प्रकार की छालों ( लाल, पीला, उजली, भूरी ) से लगभग 30 प्रकार के एल्कलायडो की प्राप्ति होती है उन्ही अनेक एल्कलायडो में से एक एल्कलायड कुनैन भी है। जो मलेरिया में दी जाने वाली प्रमुख औषधीय है सन 1820 में रसायन शास्त्री पेलेटियर ने इसकी छाल से उपक्षार (Alkaloid) को पृथक किया और उसका नाम कुनैन दिया गया।
भारत वर्ष में सिंकोना की पांच जातियाँ पाई जाती है।
1- सिंकोना ऑफिसिनेलीस (Cinchona offcinalis)
2- सिंकोना कैलीसाया (Cinchona Calisaya) इसका अन्य नाम Eolivia है।
3 - सिंकोना सकसीरूब्रा (Cinchona Succirubra)
4 - सिंकोना लेजेरीआना (Cinchona Ledgeriana)
5 - सिंकोना रुबूस्टा (Cinchona Rubusta)
औषधीय कार्य हेतु वनस्पति का उपयोगित भाग - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति की सुखाई हुई छाल और पत्तिया व्यवहार की जाती है इसका संकलन 10 वर्ष के ऊपर के वृक्षों से किया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - सिंकोना की पत्तियों और छालों में लगभग 30 प्रकार के एल्कलायड पाए जाते है। इनमे Quinine, Cinchonine, Cinchonidine, Quinidine, Cuperine Succirubine, Methylsuccirubine, Avicularin आदि प्रमुख है।
इस मशीनी युग में कुनैन का निर्माण कृत्रिम रूप से प्रयोगशालाओं में किया जाना संभव हो गया है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म और शारीरिक क्रियाएँ - वनस्पति से प्राप्त रसायन मलेरिया ज्वर को रोकने वाली होती है और स्नायू (Nervous System) की शक्ति को बढ़ाते है और शरीर में लाल कणिकाओं (Red blood corpals) का निर्माण करके शरीर में आयी हुई कमजोरी को दूर करती है। इसके व्यवहार से गर्भाशय में संकोचन होता है इसलिए इसका व्यवहार गर्भवती महिलाओं में कम ही करना चाहिए। और कुनैन के साथ यकृत की क्रिया बढ़ाने वाली औषधीय अवश्य व्यवहार करनी चाहिए।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति को क्वाथ (Decoction), तरल चूर्ण, टिंक्चर, मल्हम आदि कई रूपों में किया जाता है।
Pic credit - Google/https://cs.wikipedia.org |
विभिन्न भाषाओ में वनस्पति का प्रचलित नाम - इस पौधे को हिंदी में सिंकोना, कुनैन,संस्कृत में किंकिण, किण, रक्तत्वक,तेलगु में बारकी नमर,किंकिग, किना, होमियोपैथी में यह चाइना (China) के नाम से जाना जाता है।
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वंश - यह वनस्पति रुबीऐसी (Rubiaceae) कुल का सदस्य है। इस वंश में इसकी 40 जातिया पायी जाती है।
निवास - यह वनस्पति दक्षिण अमेरिका का मूल निवासी है। यह 19वीं शदी के आरम्भ में भारत और जावा ले जाया गया था। लगभग 200 वर्षो तक इसके प्राप्ति के श्रोत मात्र जंगल ही थे। अब तक भारत में इसके प्राप्ति के स्रोत मात्र जंगल ही थे। अब भारत में महाबलेश्वर, नीलगिरी, कुर्ग के पहाड़ी क्षेत्र, ट्राबनकोर, देव कोलम, मैसूर टीनवेल्ली, पंजाब में कांगड़ा, बंगाल में दार्जलिंग, सिक्किम, भूटान इत्यादि जगहों पर इसकी खेती की जाती है।
वनस्पति का विन्यास वर्णन - यह एक सदाहरित बहुवर्षीय वृक्ष है। इसकी पत्तिया सवृन्त, अण्डाकार किनारा भालाकार होता है पत्रवृन्त के निचे की पत्तिया अंदर की ओर ग्रंथिल होती है। इसके फूल गुलाबी, पीला या उजले होते है। फूलो की घनी मंजरियाँ ऊपरी पत्तियों के अक्ष या अंतस्य पर लगती है। फूल के बाह्य दलपुंज में 5 अदद दाँतेदार परिदल होते है। पुष्पदल पुंज नलिकाकार होते है। जो ऊपर की तरफ पांच खंडो में विभक्त हो जाते है पंखुड़ियों (Petalls) का किनारा (Margine) रोमिल होता है। परागकोष (Anthers) रेखांकित रूप में मध्यनलि से सम्बंधित रहते है। इसके फल सम्पुटिकाकार (Like Capsule) होते है। जिनमे अनेक बीज होते है। इसके वृक्ष का प्रचलित नाम सिंकोना है। इसके अनेक प्रकार की छालों ( लाल, पीला, उजली, भूरी ) से लगभग 30 प्रकार के एल्कलायडो की प्राप्ति होती है उन्ही अनेक एल्कलायडो में से एक एल्कलायड कुनैन भी है। जो मलेरिया में दी जाने वाली प्रमुख औषधीय है सन 1820 में रसायन शास्त्री पेलेटियर ने इसकी छाल से उपक्षार (Alkaloid) को पृथक किया और उसका नाम कुनैन दिया गया।
भारत वर्ष में सिंकोना की पांच जातियाँ पाई जाती है।
1- सिंकोना ऑफिसिनेलीस (Cinchona offcinalis)
2- सिंकोना कैलीसाया (Cinchona Calisaya) इसका अन्य नाम Eolivia है।
3 - सिंकोना सकसीरूब्रा (Cinchona Succirubra)
4 - सिंकोना लेजेरीआना (Cinchona Ledgeriana)
5 - सिंकोना रुबूस्टा (Cinchona Rubusta)
औषधीय कार्य हेतु वनस्पति का उपयोगित भाग - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति की सुखाई हुई छाल और पत्तिया व्यवहार की जाती है इसका संकलन 10 वर्ष के ऊपर के वृक्षों से किया जाता है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थ - सिंकोना की पत्तियों और छालों में लगभग 30 प्रकार के एल्कलायड पाए जाते है। इनमे Quinine, Cinchonine, Cinchonidine, Quinidine, Cuperine Succirubine, Methylsuccirubine, Avicularin आदि प्रमुख है।
इस मशीनी युग में कुनैन का निर्माण कृत्रिम रूप से प्रयोगशालाओं में किया जाना संभव हो गया है।
वनस्पति से प्राप्त रासायनिक पदार्थो के गुण धर्म और शारीरिक क्रियाएँ - वनस्पति से प्राप्त रसायन मलेरिया ज्वर को रोकने वाली होती है और स्नायू (Nervous System) की शक्ति को बढ़ाते है और शरीर में लाल कणिकाओं (Red blood corpals) का निर्माण करके शरीर में आयी हुई कमजोरी को दूर करती है। इसके व्यवहार से गर्भाशय में संकोचन होता है इसलिए इसका व्यवहार गर्भवती महिलाओं में कम ही करना चाहिए। और कुनैन के साथ यकृत की क्रिया बढ़ाने वाली औषधीय अवश्य व्यवहार करनी चाहिए।
वनस्पति के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - औषधीय कार्य के लिए इस वनस्पति को क्वाथ (Decoction), तरल चूर्ण, टिंक्चर, मल्हम आदि कई रूपों में किया जाता है।
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