पौधे का बैज्ञानिक नाम - पौधे का वैज्ञानिक नाम Arnica Montena Linnious है इसको हिंदी भाषा में आर्निका, या दरुंज कहा जाता है।
वंश - यह Compositeae परिवार का सदस्य है।
निवास - यह पौधा पहाड़ की पथरीली भूमि का आदिवासी है मध्य यूरोप इसका मूल निवास है भारत के हिमालयी क्षेत्रों की ककडीली भूमि में काश्मीर से गढ़वाल तक 10 हजार की फ़ीट की उचाई तक पाया जाता है।
पौधा का वर्णन - यह एक बहुवर्षीय प्रकंद वाली औषधीय साकिय भूति है। इसकी उचाई लगभग 8 से 12 इंचो तक होती है अर्निका के फूलो में स्थित पराग कणों से छींक बहुत आते है। यह एक सीधी और हमेसा हरी रहने वाली औषधीय वनस्पति है इसकी पत्तिया गोलाकार, तीखी नोक वाली, 10 से 12 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है। इसकी पत्तिया जमीन पर बिछी रहती है। और इसके प्रकंद भी जमीं पर क्षैतिज रहती है। इसके पत्तियों के बिच डंठल निकली रहती है जो अंदर से खोखली और पिली रहती है। इसके ऊर्ध्वाधर डंठल पर भी पांच से सात पत्तिया लगी रहती है। इसके डंठल के शीर्ष पर कलिया लगती है डंठलों के शीर्ष पर पिले रंग के फूल लगते है।
औषधीय कार्यो के लिए बूटी का उपयोगित अंग - औषधीय कार्यो के लिए इस बूटी के फूल और प्रकंद व्यवहार किये जाते है। इसकेफूलो का संकलन ग्रीष्म ऋतू में अथवा प्रकंदो का संकलन परिपक्व पौधे से किसी भी मौसम में किया जा सकता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे में Arnicin, Arnisterin,Inulin, Essence, Tannin, Palmitic acid, Phytosterol, Steric acid, Lauric acid, Enzyme, Essance,आदि पाए जाते है।
रासायनिक यौगिकों के गुड़, धर्म,और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाएं - इस पौधे में पाए जाने वाले रसायन किसी आघात के कारण ऊतकों को हुई क्षति को शीघ्र दूर करने वाले होते है। कुचलने या चोट लगने वाले घावों को आरोग्य करते है। प्रदाह युक्त सूजन को कम करते है। घावों को भरते है। तथा त्वचा पर घावों के चिन्हो को दूर करते है। ये ह्रदय और तंत्रिका तंत्र को शक्ति प्रदान करते है। इसका प्रयोग साईटिका दर्द, कमर दर्द, और धमिनियों के रक्त प्रवाह को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके रसायन एंटीवायरल गुण भी रखते है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - इस पौधे के पुष्पित शीर्षो और प्रकंदो को टिंक्चर, infusion और तरल के रूप में व्यवहार किया जाता है। इसकी अधिक मात्रा को यूज करने से शरीर को नुकसान करता है। Tachycardia हो जाता है।
Pic credit Google/https://commons.wikimedia.org |
वंश - यह Compositeae परिवार का सदस्य है।
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निवास - यह पौधा पहाड़ की पथरीली भूमि का आदिवासी है मध्य यूरोप इसका मूल निवास है भारत के हिमालयी क्षेत्रों की ककडीली भूमि में काश्मीर से गढ़वाल तक 10 हजार की फ़ीट की उचाई तक पाया जाता है।
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पौधा का वर्णन - यह एक बहुवर्षीय प्रकंद वाली औषधीय साकिय भूति है। इसकी उचाई लगभग 8 से 12 इंचो तक होती है अर्निका के फूलो में स्थित पराग कणों से छींक बहुत आते है। यह एक सीधी और हमेसा हरी रहने वाली औषधीय वनस्पति है इसकी पत्तिया गोलाकार, तीखी नोक वाली, 10 से 12 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है। इसकी पत्तिया जमीन पर बिछी रहती है। और इसके प्रकंद भी जमीं पर क्षैतिज रहती है। इसके पत्तियों के बिच डंठल निकली रहती है जो अंदर से खोखली और पिली रहती है। इसके ऊर्ध्वाधर डंठल पर भी पांच से सात पत्तिया लगी रहती है। इसके डंठल के शीर्ष पर कलिया लगती है डंठलों के शीर्ष पर पिले रंग के फूल लगते है।
औषधीय कार्यो के लिए बूटी का उपयोगित अंग - औषधीय कार्यो के लिए इस बूटी के फूल और प्रकंद व्यवहार किये जाते है। इसकेफूलो का संकलन ग्रीष्म ऋतू में अथवा प्रकंदो का संकलन परिपक्व पौधे से किसी भी मौसम में किया जा सकता है।
पौधे से प्राप्त रासायनिक यौगिक - इस पौधे में Arnicin, Arnisterin,Inulin, Essence, Tannin, Palmitic acid, Phytosterol, Steric acid, Lauric acid, Enzyme, Essance,आदि पाए जाते है।
रासायनिक यौगिकों के गुड़, धर्म,और मानव शरीर को प्रभावित करने वाली क्रियाएं - इस पौधे में पाए जाने वाले रसायन किसी आघात के कारण ऊतकों को हुई क्षति को शीघ्र दूर करने वाले होते है। कुचलने या चोट लगने वाले घावों को आरोग्य करते है। प्रदाह युक्त सूजन को कम करते है। घावों को भरते है। तथा त्वचा पर घावों के चिन्हो को दूर करते है। ये ह्रदय और तंत्रिका तंत्र को शक्ति प्रदान करते है। इसका प्रयोग साईटिका दर्द, कमर दर्द, और धमिनियों के रक्त प्रवाह को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके रसायन एंटीवायरल गुण भी रखते है।
पौधे के व्यवहार का प्रचलित स्वरुप - इस पौधे के पुष्पित शीर्षो और प्रकंदो को टिंक्चर, infusion और तरल के रूप में व्यवहार किया जाता है। इसकी अधिक मात्रा को यूज करने से शरीर को नुकसान करता है। Tachycardia हो जाता है।
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